पेसा अनुसूचित क्षेत्रों के लिए पंचायतों से संबंधित संविधान के भाग IX के प्रावधानों के विस्तार के लिए एक कानून है। इस कानून की धारा 2 के संदर्भ में, "अनुसूचित क्षेत्रों" का अर्थ अनुसूचित क्षेत्रों से है जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 244 के खंड (1) में संदर्भित है। पांचवीं अनुसूची के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को मुख्यधारा में लाने के लिए संसद ने संविधान के अनुच्छेद 243एम(4)(बी) के संदर्भ में, "पंचायतों के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) कानून 1996" (पीईएसए) को कुछ संशोधनों और अपवादों के साथ, पंचायतों से संबंधित संविधान के भाग IX को पांचवीं अनुसूची क्षेत्रों तक विस्तारित करने के लिए कानून बनाया है।" पंचायतों के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार), कानून 1996" (पीईएसए) के तहत, राज्य विधानसभाओं को कानून की धारा 4 में प्रदत्त ऐसे अपवादों और संशोधनों के अधीन पांचवीं अनुसूची में पंचायतों से संबंधित संविधान के भाग IX के प्रावधानों के विस्तार से संबंधित सभी कानूनों को बनाने का अधिकार दिया गया है।
1995 में भूरिया समिति द्वारा प्रस्तुत की गई रिपोर्ट के आधार पर 1996 में संसद द्वारा पेसा अधिनियम लागू किया गया था। पैसा कानून यानी पंचायतों के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम 1996 भारत के अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए पारम्परिक ग्राम सभाओं के माध्यम से स्वशासन सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार द्वारा बनाया गया एक कानून है। अनुसूचित क्षेत्र भारत के संविधान की पांचवी अनुसूची द्वारा पहचाने गए क्षेत्र हैं, जो अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभाओं को विशेष रूप से प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन के लिए विशेष अधिकार देता है। आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना ने अपने संबंधित राज्य पंचायती राज कानूनों के तहत अपने राज्य पेसा नियम बनाए और अधिसूचित किए हैं। ग्रामीण भारत में स्थानीय स्वशासन को बढ़ावा देने के लिये 1992 में 73वाँ संविधान संशोधन पारित किया गया था। इस संशोधन द्वारा त्रिस्तरीय पंचायती राज संस्था के लिये कानून बनाया गया। हालांकि अनुच्छेद 243 (M) के तहत अनुसूचित और आदिवासी क्षेत्रों में यह प्रतिबंधित था। वर्ष 1995 में भूरिया समिति की सिफारिशों के बाद भारत के अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों हेतु आदिवासी स्वशासन सुनिश्चित करने के लिये पेसा अधिनियम 1996 अस्तित्व में आया। पेसा, अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिये ग्राम सभाओं (ग्राम विधानसभाओं) के माध्यम से स्वशासन सुनिश्चित करने हेतु केंद्र द्वारा अधिनियमित किया गया था। यह कानूनी रूप से आदिवासी समुदायों, अनुसूचित क्षेत्रों के निवासियों के अधिकार को स्वशासन की अपनी प्रणालियों के माध्यम से स्वयं को शासित करने के अधिकार को मान्यता देता है। यह प्राकृतिक संसाधनों पर उनके पारंपरिक अधिकारों को स्वीकार करता है।
पेसा ग्राम सभाओं को विकास योजनाओं की मंज़ूरी देने और सभी सामाजिक क्षेत्रों को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का अधिकार देता है। पेसा कानून, मध्यप्रदेश में 15 नवम्बर 2022 से लागू हो चुका है जो ग्राम सभाओं को वन क्षेत्रों में सभी प्राकृतिक संसाधनों के संबंध में नियमों और विनियमों पर निर्णय लेने का अधिकार देगा। पेसा कानून जनजातीय समुदाय को उन वन क्षेत्रों से प्राकृतिक संसाधनों का लाभ उठाने के लिए अधिक संवैधानिक अधिकार देगा जहां वे रहते हैं। ग्राम सभा को अपने गाँव की सीमा के भीतर नशीले पदार्थों के निर्माण, परिवहन, बिक्री और खपत की निगरानी और निषेध करने की शक्तियाँ प्राप्त होंगी। प्रदेश के 20 जिलों के 89 विकासखण्डों की 5254 पंचायतों के 11757 ग्रामों में यह नियम लागू है जहाँ जल, जमीन और जंगल पर जनजातीय समुदाय का सीधा नियंत्रण होगा। छल, कपट से अब कोई जमीन नहीं हड़प सकेगा। ग्राम सभा द्वारा अमृत सरोवरों और तालाबों का प्रबंधन होगा और वनोपज की दर भी ग्राम सभा द्वारा तय की जाएगी। रेत खदान, गिट्टी पत्थर देने जैसे निर्णय भी अब सीधे ग्राम सभा द्वारा लिए जाएंगे। इस एक्ट के माध्यम से स्थानीय संस्थाओं परम्परों , संस्कृति का संवर्धन और संरक्षण हो सकेगा। इस कानून का उद्देश्य जनजातीय समाज को स्वशासन प्रदान करने के साथ ही ग्रामसभाओं को सभी गतिविधियों का मुख्य केन्द्र बनाना है।
पेसा कानून के तहत जो नियम सरकार ने बनाए हैं, उसमें जल, जंगल और जमीन का अधिकार ग्राम सभाओं को दिया गया है। हर साल गांव की जमीन, उसका नक्शा, वनक्षेत्र का नक्शा, खसरे की नकल, पटवारी को या बीट गार्ड को गांव में लाकर ग्रामसभा को दिखानी होगी ताकि जमीनों में हेर-फेर न हो। नामों में गलती है तो यह ग्रामसभा को उसे ठीक कराने का अधिकार होगा। किसी भी प्रोजेक्ट, बांध या किसी काम के लिए गांव की जमीन ली जाती है तो ग्राम सभा की अनुमति के बिना ऐसा नहीं हो सकेगा। पेसा कानून के जरिये ग्राम सभाओं को और अधिक अधिकार मिले हैं।
गैर जनजातीय व्यक्ति या कोई भी अन्य व्यक्ति छल-कपट से, बहला-फुसलाकर, विवाह करके जनजातीय जमीन पर गलत तरीके से कब्जा करने या खरीदने की कोशिश करें तो ग्राम सभा इसमें अब सीधे हस्तक्षेप कर सकेगी। यदि ग्राम सभा को यह पता चलता है कि वह उस जमीन का कब्जा फिर से जनजातीय भाई-बहनों को दिलवाएगी। अधिसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभा की अनुशंसा के बिना खनिज के सर्वे, पट्टा देने या नीलामी की कार्यवाही नहीं हो सकेगी। जनजातीय क्षेत्रों में लायसेंसधारी साहूकार ही निर्धारित ब्याज दर पर पैसा उधार दे सकेंगे गांव में तालाबों का प्रबंध अब ग्राम सभा करेगी। उससे जो आय होगी वह भी गांव के लोगों को प्राप्त होगी। इसका मतलब यह है कि ग्राम सभा तालाब/जलाशय में विभिन्न गतिविधियां की जा सकती है। इससे होने वाली आमदनी भी ग्राम सभा को मिलेगी। तालाब में किसी भी प्रकार की गंदगी, कचरा, सीवेज आदि जमा न हो, प्रदूषित न हो, इसके लिए ग्राम सभा किसी भी प्रकार के प्रदूषण को रोकने के लिए कार्यवाही कर सकेगी। 100 एकड़ तक की सिंचाई क्षमता के तालाब और जलाशय का प्रबंधन संबंधित ग्राम पंचायत द्वारा किया जाएगा।
तेंदुपत्ता तोड़ने और बेचने का अधिकार भी इस अधिकार के माध्यम से ग्राम सभाओं को दिया गया है। गांव में मनरेगा और अन्य कामों के लिए आने वाले धन से कौन सा काम किया जायेगा, इसे पंचायत सचिव नहीं बल्कि ग्राम सभा तय करेगी। ग्राम सभा अपने क्षेत्र में स्वयं या एक समिति गठित कर वनोपजों आदि का संग्रहण, मार्केटिंग, मूल्य तय करना और बिक्री कर सकेंगे। एक से अधिक ग्राम सभा भी मिलकर यह काम कर सकती है। अभी तक या तो सरकार या फिर व्यापारी लघु वनोपजों का मूल्य तय किया करते थे लेकिन अब रेट कंट्रोल की कमांड ग्राम सभा के माध्यम से जनजातीय समुदाय के हाथ में होगी।
काम के नाम पर गांव में कुछ एजेंट आते हैं। जमीन ले जाने की बात करते हैं। बाद में ग्रामीण दिक्कत में फंस जाती हैं। पेसा के नियम के तहत यह अधिकार मिला है कि गांव से कोई बेटा-बेटी जाएगा तो ले जाने वाले को पहले ग्राम सभा को बताना होगा। बिना बताए ले जाने पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी। अब ग्राम सभा के पास काम के लिए बाहर जाने वाले सभी लोगों की सूची भी रहेगी। काम के लिए अपने गांव से ग्राम सभा को बिना बताए जाने को नियमों का उल्लंघन माना जाएगा।
प्रदेश में शराब की नई दुकानें बिना ग्रामसभा की अनुमति के नहीं खुलेंगी। शराब या भांग की दुकान हटाने की अनुशंसा का अधिकार भी ग्राम सभा को होगा। यदि 45 दिन में ग्राम सभा कोई निर्णय नहीं करती है, यह मान लिया जाएगा कि नई दुकान खोलने के लिए ग्राम सभा सहमत नहीं है। फिर दुकान नहीं खोली जाएगी। ग्राम सभा किसी स्थानीय त्यौहार के अवसर पर उस दिन पूरे दिन के लिए या कुछ समय के लिए शराब दुकान बंद करने की अनुशंसा कलेक्टर से कर सकती है। एक वर्ष में कलेक्टर चार ड्राय डे के अंतर्गत दुकान को बंद कर सकेंगे।
हर गांव में एक शांति एवं विवाद निवारण समिति होगी। यह समिति परंपरागत पद्धति से गांव के छोटे-मोटे विवादों का निराकरण कराएगी। इस समिति में कम से कम एक तिहाई सदस्य महिलाएं होंगी। यदि ग्राम के किसी व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो तो इसकी सूचना पुलिस थाने द्वारा तत्काल गांव की शांति एवं विवाद निवारण समिति को दी जाएगी। मेले और बाजार का प्रबंध, स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र ठीक चलें, आंगनवाड़ी में बच्चों को पोषण आहार मिले, आश्रम शालाएं और छात्रावास बेहतर तरीके से चलें, यह काम भी ग्राम सभा देखेंगी।
Monday 2 January 2023
पेसा कानून से होगा आदिवासी समुदाय का सशक्तिकरण
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