Sunday, 30 October 2016

दीवाली : प्रकाश पर्व की धूम





हिन्दू परंपरा में त्यौहार से आशय  उत्सव और  हर्षोल्लास से लिया जाता है ।  अपने देश की बात  की जाए  तो यहाँ मनाये जाने वाले त्योहारों में विविधता में एकता के दर्शन होते हैं । यहाँ मनाये जाने वाले सभी त्योहार कमोवेश परिस्थिति के अनुसार अपने रंग , रूप और आकार में भिन्न हो सकते हैं लेकिन इनका अभिप्राय आनंद की प्राप्ति ही होता है । अलग अलग धर्मों में त्यौहार मनाने के विधि विधान भिन्न हो सकते हैं लेकिन सभी का मूल मकसद बड़ी आस्था और विश्वास  का संरक्षण होता है । सभी त्योहारों से कोई न कोई पौराणिक कथा जुडी हुई है  जिनमे से सभी का सम्बन्ध आस्था और विश्वास से है । यहाँ पर यह भी कहा जा सकता है इन त्योहारों की  पौराणिक कथाएँ भी प्रतीकात्मक होती हैं । कार्तिक मॉस की अमावस के दिन दीवाली का त्यौहार मनाया जाता है । दीवाली का त्यौहार महज त्यौहार ही नहीं है इसके साथ कई पौराणिक गाथाए भी  जुडी हुई हैं  ।

दीवाली की शुरुवात आमतौर पर कार्तिक मॉस की कृष्ण पक्ष त्रयोदशी के दिन से होती है जिसे धनतेरस कहा जाता है । इस दिन आरोग्य के देव धन्वन्तरी की पूजा अर्चना का विधान है । इसी दिन भगवान  को प्रसन्न  रखने के लिए नए नए बर्तन , आभूषण खरीदने का चलन है । यह अलग बात है मौजूदा दौर में  बाजार अपने हिसाब से सब कुछ तय कर रहा है और पूरा देश चकाचौंध के साये में जी रहा है जहां अमीर के लिए दीवाली ख़ुशी का प्रतीक है वहीँ गरीब आज भी दीवाली उस उत्साह और चकाचौध के साये में जी कर नहीं मना  पा रहा है जैसी उसे अपेक्षा है क्युकि समाज में अमीर और गरीब की खाई दिनों दिन गहराती ही जा रही है । 

 धनतेरस के दूसरे दिन नरक चौदस मनाई जाती है जसी छोटी दीवाली भी कहते हैं । इस दिन किसी पुराने दिए में  सरसों के तेल में पांच  अन्न के दाने डालकर घर में जलाकर रखा जाता है जो दीपक यम दीपक कहलाता है । ऐसा माना जाता है इस दिन कृष्ण ने नरकासुर रक्षक का वध कर उसके कारागार से तकरीबन 16000 कन्याओं को मुक्त किया था । तीसरे दिन अमावस की रात दीवाली का त्यौहार उत्साह के साथ मनाया जाता है । इस दिन गणेश जी और लक्ष्मी की स्तुति की जाती है । दीवाली के बाद अन्नकूट मनाया जाता है । लोग इस दिन विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाकर गोवर्धन की पूजा करते हैं । पौराणिक मान्यता है कृष्ण ने नंदबाबा और यशोदा और ब्रजवासियों को इन्द्रदेव की पूजा करते देखा ताकि इन्द्रदेव ब्रज पर मेहरबान हो जाये तो उन्होंने ब्रज के वासियों को समझाया कि जल हमको गोवर्धन पर्वत से मिलता है जिससे प्रभावित होकर सबने गोबर्धन को पूजना शुरू कर दिया । यह बात जब इंद्र को पता चली तो वह आग बबूला हो गए और उन्होंने ब्रज को बरसात से डूबा देने की ठानी  जिसके बाद भारी वर्षा का दौर बृज में देखने को मिला ।  सभी  रहजन कृष्ण के पास गए और तब कान्हा ने तर्जनी पर गोबर्धन पर्वत उठा लिया । पूरे सात दिन तक  भारी वर्षा हुई पर ब्रजवासी गोबर्धन पर्वत के नीचे सुरक्षित रहे । सुदर्शन चक्र ने उस दौर में बड़ा काम किया और वर्षा के जल को सुखा दिया । बाद में इंद्र ने कान्हा से माफ़ी मांगी और तब सुरभि गाय ने कान्हा का दुग्धाभिषेक किया जिस मौके पर 56 भोग का आयोजन नगर में किया गया । तब से गोबर्धन पर्वत और अन्नकूट की परंपरा चली आ रही है । 


 शुक्ल द्वितीया को भाई दूज मनायी जाती है । मान्यता है यदि इस दिन भाई और बहन यमुना में स्नान करें तो यमराज आस पास भी नहीं फटकते । दीवाली में दिए जलाने की परंपरा उस समय से चली आ रही है जब रावन की लंका पर विजय होने के बाद राम अयोध्या लौटे थे । राम के आगमन की ख़ुशी इस पर्व में देखी जा सकती है । जिस दिन मर्यादा पुरुषोत्तम राम अयोध्या लौटे थे उस रात कार्तिक मॉस की अमावस थी और चाँद बिलकुल दिखाई नहीं देता था । तब नगरवासियों में अयोध्या को दीयों की रौशनी से नहला दिया । तब से यह त्यौहार धूमधाम से  मनाया जा रहा है । ऐसा माना जाता है दीवाली की रात यक्ष अपने राजा कुबेर के साथ हस परिहास करते और आतिशबाजी से लेकर पकवानों की जो धूम इस त्यौहार में दिखती है वह सब यक्षो की ही दी हुई है । वहीँ कृष्ण भक्तों की मान्यता है इस दिन कृष्ण ने अत्याचारी राक्षस नरकासुर का वध किया था । इस वध के बाद लोगों ने ख़ुशी में घर में दिए जलाए । एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान् विष्णु ने नरसिंह रूप धारण कर हिरनकश्यप का वध किया था और समुद्र मंथन के पश्चात प्रभु धन्वन्तरी और धन की देवी लक्ष्मी प्रकट हुई जिसके बाद से उनको खुश करने के लिए यह सब त्योहार के रूप में मनाया जाता है । वहीँ  जैन मतावलंबी मानते हैं कि जैन धरम के 24 वे तीर्थंकर महावीर का निर्वाण दिवस भी दिवाली को हुआ था । बौद्ध मतावलंबी का कहना है बुद्ध के स्वागत में तकरीबन 2500 वर्ष पहले लाखो अनुयायियों ने दिए जलाकर दीवाली को मनाया । दीपोत्सव सिक्खों के लिए भी महत्वपूर्ण है । ऐसा माना जाता है इसी दिन अमृतसर में स्वरण मंदिर का शिलान्यास हुआ था और दीवाली के दिन ही सिक्खों के छठे गुरु हरगोबिन्द सिंह को कारागार से रिहा किया गया था । आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद  ने 1833 में दिवाली के दिन ही प्राण त्यागे थे । इस लिए  उनके लिए भी इस त्यौहार का विशेष महत्व है । 



भारत के सभी  राज्यों में दीपावली धूम धाम के साथ मनाई जाती है । परंपरा के अनुरूप इसे मनाने के तौर तरीके अलग अलग बेशक हो सकते हैं लेकिन आस्था की झलक सभी राज्यों में दिखाई देती है । गुजरात में नमक को लक्ष्मी का प्रतीक मानते हुए जहाँ इसे बेचना शुभ माना जाता है वहीँ राजस्थान में दीवाली के दिन रेशम के गद्दे बिछाकर अतिथियों के स्वागत की परंपरा देखने को मिलती है । हिमाचल में आदिवासी इस दिन यक्ष पूजन करते हैं तो उत्तराखंड में थारु आदिवाई अपने मृत पूर्वजों के साथ दीवाली मनाते  हैं । बंगाल में दीवाली को काली  पूजा के रूप में मनाया जाता है ।  देश के साथ ही विदेशों में भी दीवाली की धूम देखने को मिलती है । ब्रिटेन से लेकर अमरीका तक में यह में दीवाली  धूम के साथ मनाया जाता है ।  विदशों में भी धन की देवी के कई रूप देखने को मिलते हैं । धनतेरस को लक्ष्मी का समुद्र मंथन से प्रकट का दिन माना जाता है । भारतीय परंपरा उल्लू को लक्ष्मी का वाहन मानती है लेकिन महालक्ष्मी स्रोत में गरुण अथर्ववेद में हाथी को लक्ष्मी का वाहन बताया गया है  । प्राचीन यूनान की महालक्ष्मी एथेना का वाहन भी उल्लू ही बताया गया है लेकिन प्राचीन यूनान में धन की अधिष्ठात्री देवी के तौर पर पूजी जाने वाली हेरा का वाहन मोर है । भारत के अलावा विदेशों में भी लक्ष्मी पूजन के प्रमाण मिलते हैं । कम्बोडिया में शेषनाग पर आराम कर रही विष्णु जी के पैर दबाती एक महिला की मूरत के प्रमाण बताते हैं यह लक्ष्मी है ।   प्राचीन यूनान के सिक्कों पर भी लक्ष्मी की आकृति देखी जा सकती है । रोम में चांदी  की थाली में लक्ष्मी की आकृति होने के प्रमाण इतिहासकारों ने दिए हैं । श्रीलंका में भी पुरातत्व विदों  को खनन और खुदाई में कई भारतीय देवी देवताओं की मूर्तिया मिली हैं जिनमे लक्ष्मी भी शामिल है । इसके अलावा थाईलैंड , जावा , सुमात्रा , मारीशस , गुयाना , अफ्रीका , जापान , अफ्रीका जैसे देशों में भी इस धन की देवी की पूजा की जाती है । यूनान में आइरीन , रोम में फ़ोर्चूना , ग्रीक में दमित्री को धन की देवी एक रूप में पूजा जाता है तो  यूरोप में भी एथेना मिनर्वा औरऔर एलोरा का महत्व है ।  

   समय बदलने के साथ ही बाजारवाद के दौर के आने के बाद आज बेशक इसे मनाने के तौर तरीके भी बदले हैं लेकिन आस्था और भरोसा ही है जो कई दशकों तक परंपरा के नाम पर लोगों को एक त्यौहार के रूप में देश से लेकर विदेश तक के प्रवासियों को एक सूत्र में बाँधा है । बाजारवाद के इस दौर में  घरों में मिटटी के दीयों की जगह आज चीनी उत्पादों और लाइट ने ले ली है लेकिन यह त्यौहार उल्लास का प्रतीक तभी बन पायेगा जब हम उस कुम्हार के बारे में भी सोचें  जिसकी रोजी रोटी मिटटी के उस दिए से चलती है जिसकी ताकत चीन के सस्ते दीयों ने  आज छीन ली है ।  हम पुराना वैभव लौटाते हुए यह तय करें कि कुछ दिए उस कुम्हार के नाम  इस दीवाली में खरीदें जिससे उसकी भी आजीविका चले और उसके घर में भी खुशहाली आ सके । इस त्यौहार में भले ही महानगरों में आज  चकाचौंध का माहौल है और हर दिन अरबों के वारे न्यारे किये जा रहे हैं लेकिन सरहदों में दुर्गम परिस्थिति में काम करने वाले जवानों के नाम भी हम एक दिया जलाये जो दिन रात सरहदों की निगरानी करने में मशगूल हैं  और अभी भी दीपावली अपने परिवार से दूर रहकर मना  रहे हैं । इस दीवाली पर हम यह संकल्प भी करें तो बेहतर रहेगा यदि इस बार की दीवाली हम पौराणिक स्वरुप में मनाते हुए स्वदेशी उत्पादों का इस्तेमाल करें । पटाखों के शोर से अपने को दूर करते हुए पर्यावरण का ध्यान रखें और कुम्हार के दीयों से  अपना घर रोशन ना करें बल्कि समाज को भी नहीं राह दिखाए  तो तब कुछ बात बनेगी 

Friday, 28 October 2016

नया गुल खिलाएगी चीन - पाक दोस्ती





चीन से पाकिस्तान की नजदीकियां दिनों दिन बढ़ती ही जा रही हैं।  ऐसे दौर में जब पाकिस्तान के खिलाफ पूरा विश्व एकजुट हो रहा है और आतंक के मसले पर सार्क सम्मलेन तक रदद् हो चुका है तब भी चीन का  उसके साथ एक जुट होकर खड़ा होना कई सवालों को तो पैदा कर रहा है । हाल के  समय में हुए ब्रिक्स सम्मेलन में भारत ने सीमा पार आतंक का मसला उठाकर पाक को सीधे निशाने पर लिया इसके बाद भी चीन पाक के साथ खड़ा रहा और उसने उसके सुर में सुर मिलाया और चीनी विदेश मंत्रालय से प्रतिक्रिया आने में देरी नहीं हुई । उड़ी हमले में भारत के  जवानों के  शहीद होने के बाद कई देशों ने भारत का साथ दिया  जबकि चीन को पाकिस्तान का साथ देना ज्यादा भाया  । उसने यहां तक कह डाला अगर पाकिस्तान में युद्ध की स्थिति आ गई तो वह उसका साथ देने को तैयार है।  यही नहीं  चीन ने  मसूद अजहर को आतंकी माने जाने से साफ़ इनकार कर दिया  जबकि  दुनिया जानती है   मसूद अजहर पाकिस्तान स्थित जैश ए मोहम्मद का वही सरगना है जिसे  भारत ने  संयुक्त राष्ट्र में आतंकी घोषित करने का आवेदन किया था। उस समय चीन ने मसूद को आतंकी घोषित करने पर सीधी  रोक लगाई थी। चीन की ओर से लगाई गई रोक की मियाद तीन अक्टूबर को पूरी हो गई थी। अगर चीन ने आगे आपत्ति नहीं उठाई होती तो अजहर को आतंकवादी घोषित  करने वाला प्रस्ताव अपने आप पारित हो गया होता। चीन के इस अड़ियल  रुख का सील भारत को भुगतान पड़ा है जब चीन की यह रोक अगले छह महीने के लिए फिर बढ़ गई है।

इसी बरस  जनवरी में  पठानकोट में वायुसेना अड्डे पर हमला हुआ था। इस हमले में सात भारतीय सैन्यकर्मी शहीद हो गए थे। इस हमले की जांच में भारत ने पर्याप्त सबूत जुटाए । पाक की एन आई ए की जांच टीम भी भारत आयी और हमले के तार सीधे सीधे   जैश मोहम्मद से जुड़े पाए गए जिसके बाद भारत ने अजहर पर प्रतिबंध लगाने के लिए संयुक्त राष्ट्र से अपील की थी लेकिन चीन ने वीटो पावर का इस्तेमाल कर मसूद पर प्रतिबंध लगाने की भारत की कोशिश पर सीधे सीधे पानी फेर दिया । यह स्थिति उस समय की रही जब 15  में से 14  देश ऐसे थे जो मसूद को बैन किए जाने के समर्थन में थे। बीते उरी हमले में भी जैश ए मोहम्मद को जिम्मेदार ठहराया गया था। इस हमले के बाद भी जहां आतंकवाद के मुद्दे पर सारी दुनिया ने पाकिस्तान को कोसा और भारत  के साथ खड़े रहे  वहीं चीन ने उसकी तरफदारी कर यह जतला दिया वह पाकिस्तान के साथ अपने रिश्ते तल्ख़ नहीं करना चाहता । 

भारत पाक की इस नई  दोस्ती की बड़ी वजह अतीत में चीन केसाथ खाबराब रहे भारत के सम्बन्ध भी हैं । पुराने पन्ने  टटोलें  तो  नेहरू के दौर में हिंदी चीनी भाई भाई के दावों की धज्जियाँ  चीन ने 1962 में युद्ध करके उड़ा  दी  जिसके बाद से भारत  चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर बयानबाजी का दौर देखने को मिलता है । इस युद्ध की आड़ में उसने भारत के एक बड़े हिस्से पर अपना कब्ज़ा जमा लिया और पाक अधिकृत कश्मीर पर पाकिस्तान के साथ  मिलकर  भारत के खिलाफ एक बड़ी मोर्चेबंदी में जुटा  रहा । अरुणाचल प्रदेश के काफी बड़े हिस्से पर आज भी वह अपना दावा जताता रहा है और अरूणाचल के लोगों को अपने यहाँ घुसने के लिए वीजा नहीं मांगता है ।   रिश्तों में कड़वाहट यहीं  नहीं थमती ।  इस बरस ही  चीन ने परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह की सदस्यता के लिए भारत का खुलकर  विरोध किया था। एनएसजी समूह के 48  सदस्य देशों में से ज्यादातर देश भारत के पक्ष में थे। चीन इसलिए भारत का विरोध कर रहा था क्योंकि चीन का मानना था कि भारत के एनएसजी में प्रवेश से दक्षिण एशिया में सामरिक संतुलन प्रभावित होगा और भारत एक  परमाणु शक्ति बन जाएगा। वह एनएसजी में भारत की सदस्यता का खुला विरोध कर रहा था। वह अपने सामरिक आर्थिक और व्यापारिक हितों के तहत  पाकिस्तान को इसका सदस्य बनाना चाहता था।मौजूद दौर में  चीन पकिस्तान के जरिये अब एक नई लकीर खींचना चाहता है । पकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह के निर्माण में वह अपना बड़ा इन्वेस्टमेंट कर रहा है वहीँ शिंजिआंग प्रान्त  को अब वह सीधे बलूचिस्तान से जोड़ने की आर्थिक मोर्चेबंदी की तरफ बढ़ रहा है । ईरान से एक  आर्थिक गलियारा खोलने की दिशा में भी वह वह बढ़ रहा है जिसकी पहुच सीधे यूरोप तक होगी और यह मोदी के चाबहार की बड़ी काट आने वाले दिनों में हो सकती है ।  हाल के दिनों में पी एम मोदी ने जिस तरह अंतरराष्ट्रीय स्टार पर बलूचिस्तान के मसले को दुनिया में उठाया उसके बाद से चीन परेशान हो गया है क्योंकि वहां पर चीन बड़े पैमाने पर निवेश को बढावा दे रहा है और अगर दुनिया बलूचिस्तान को हवा  देने लगेगी तो इससे उसके भी व्यापारिक हित सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे और उसको बड़ा नुकसान  भुगतने को तैयार होना पड़ेगा जिससे चीन की यूरोप तक उड़ान  थम सकती है । हाल के समय में यूरोप तक पहुच बनाने के लिए चीन को पापड़ बेलने पड़ रहे हैं क्यूंकि वह अपने सामन को वहां केवल समुद्री मार्ग से ही पंहुचा सकता है लेकिन बलूचिस्तान के आर्थिक गलियारे को अगर सीधे अरब देशों से जोड़ दिया जाए तो चीन यूरोप पर अपना आधिपत्य स्थापित कर सकता है ।  


भारत चीन तनातनी विवादित नेताओं को वीजा देने पर भी हो चुकी है । भारत ने मध्य प्रदेश के धर्मशाला में बैठक में शामिल होने के लिए चीन के विवादित नेता डोल्कुन को वीजा दिया थाजिसे चीन एक खतरनाक अलगाववादी आतंकी नेता मानता है। डोल्कुन  को वीजा देने पर चीन ने भारत से नाराजगी जताई थी। इसके बाद भारत ने ईसा का वीजा रद्द कर दिया। मसूद अजहर को आतंकी घोषित करने का तर्क भारत ने यह दिया था कि अजहर को सूची में शामिल नहीं करने से भारत और दक्षिण एशिया के अन्य देशों में आतंकवादी समूह और इसके प्रमुख से खतरा बना रहेगा। भारत ने केवल अपनी नहीं दक्षिण एशिया के देशों की सुरक्षा पर मंडरा रहे खतरे पर भी चिंता जताई थी। इससे पहले संयुक्त राष्ट्र ने 2001  में जैश  ए  मोहम्मद पर पाबंदी लगाई थी। इसके बाद मुंबई में 2008  में  हमला होने के बाद भारत ने उस पर पाबंदी लगाने का प्रयास किया  लेकिन तब भी चीन अपनी करतूत से बाज नहीं आया। तब उसने वीटो पावर का इस्तेमाल करके भारत को झटका दिया था। एक बार फिर चीन अपने इरादों में सफल रहा है। उड़ी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को आतंकवाद के मुद्दे पर हर अंतरराष्ट्रीय मंच पर कोसने का कोई मौका नही छोड़ा है । 

 ब्रिक्स सम्मेलन में भी भारत की यह कोशिश जारी रही। दुनियाभर के कई देशों ने इस मुद्दे पर पाकिस्तान की निंदा की  लेकिन चीन ने पाकिस्तान के प्रति अपना रुख नरम ही रखा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्रिक्स सम्मेलन में नाम लिए बगैर आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान पर हमला बोला। उन्होंने ब्रिक्स देशों के राष्ट्राध्यक्षों से कहा   हमारी समृद्धि के लिए आतंकवाद सबसे गंभीर खतरा है। ब्रिक्स सम्मेलन में हिस्सा लेने आए रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमिर पुतिन ने पाक अधिकूत कश्मीर में भारत की सर्जिकल स्ट्राइक को जहाँ सही बताया  वहीँ  चीन का रुख पाकिस्तान की तरफ नरम ही रहा।  उड़ी में सैन्य शिविर पर हुए आतंकी हमले के बाद भारत लगातार पाकिस्तान को अलग थलग करने की कोशिश कर रहा है । भारत की कई कोशिशों के बाद पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग तो पड़ गया  लेकिन चीन का रुख पाकिस्तान की तरफ सॉफ्ट ही बना रहा। ब्रिक्स में प्रधानमंत्री मोदी के यह कहने के बाद कि आतंकवाद दुनिया में शांति और तरक्की के रास्ते में बहुत बड़ा रोड़ा है चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने आतंकवाद को लेकर भारत के रुख पर सहमति  तो जताई लेकिन उसी के विदेश मंत्रालय ने चीनी भाषा में क्षेत्रीय समस्याओं के राजनीतिक समाधान तलाशे जाने का आह्वान कर भारत की मुश्किलों को बढ़ाने का काम किया । 

 पाकिस्तान के साथ चीन के अपने राजनीतिक  सामरिक और व्यापारिक स्वार्थ जुड़े हैं शायद यही वजह है इस दौर में  वह हर मसले पर  पर अपना रुख नरम किए हुए है ।  चीन ने पाकिस्तान में अपने परमाणु रिएक्टर लगा रखे हैं और वह दक्षिण एशिया में इसका बाजार बढ़ाना चाहता है।साउथ चाइना सी  पर वह दुनिया को धता बताकर अपना आधिपत्य जमाने की दिशा में मजबूती के साथ बढ़ रहा है जिससे वह अमरीका तक से सीधा जोखिम लेने को तैयार है । इस दौर में अमेरिका से भारत की नजदीकी भी चीन को रास नहीं आ रही है जिसकी काट के लिए पर वह पाकिस्तान  को तो साध ही रहा है बल्कि रूस को भी नयी धुरी दक्षिण एशिया में बनाना चाहता है । देखना होगा आने वाले दिनों में चीन पाक की यह जुगलबंदी दक्षिण एशिया को कितना प्रभावित कर पाती है ? 

Monday, 17 October 2016

उत्तराखंड में जनरल खण्डूड़ी पर दांव खेलने की तैयारी में भाजपा




 

यू पी के साथ साथ उत्तराखंड में विधानसभा चुनावों की उलटी गिनती शुरू होते ही भाजपा की मुश्किलें बढती ही जा रही हैं |  2017 के उत्तराखंड चुनावों की बिसात के केन्द्र में जिस तरह हरीश रावत आ गए हैं तो उनके मुकाबले के लिए भाजपा में वर्चस्व की जंग चल रही है | नेतृत्व के गंभीर संकट से जूझ रही उत्तराखंड भाजपा में इस समय पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चन्द्र खण्डूड़ी को 2017  की चुनाव समिति की कमान सौपकर भावी मुख्यमंत्री के तौर पर फिर से मैदान में उतार सकती है | 2012  के चुनावों से ठीक पहले निशंक को हटाकर जिस अंदाज में भाजपा आलाकमान ने विधान सभा चुनावों से ठीक पहले खण्डूड़ी को सी एम के रूप में प्रोजेक्ट किया था उसका लाभ भाजपा को इस रूप में मिला कि उत्तराखंड में खण्डूड़ी ने भाजपा के डूबते जहाज को तो बचा लिया लेकिन जहाज का कैप्टेन जनरल कोटद्वार में पार्टी के भीतरघात के चलते खुद चुनाव हार गया और शायद यही वजह रही 2012 के चुनावों में भाजपा कांग्रेस से महज एक सीट पीछे रही जिसके बाद खण्डूड़ी की हार ने निर्दलियों के साथ कांग्रेस के मुख्यमंत्री के रूप में विजय बहुगुणा की ताजपोशी का रास्ता साफ़ किया था |  

उत्तराखंड में  खांटी कांग्रेसी हरीश रावत के कद के आगे सिवाए खण्डूड़ी के प्रदेश भाजपा का कोई चेहरा सामने नहीं टिकता  । मुख्यमंत्री हरीश रावत ने फरवरी 2014 में अपनी ताजपोशी के बाद से जिस तरह टी ट्वेंटी अंदाज में पूरे उत्तराखंड में बैटिंग की है उससे भाजपा की दिलों की धडकनें बढ़ी हुई हैं | चुनावी मॉड में होने के कारण उनके द्वारा ताबड़तोड़ घोषणाएं की जा रही हैं | भले ही यह सभी घोषणाएं पूरी ना हो पाएं लेकिन राज्य में हरीश रावत ने विजय बहुगुणा के सी एम पद से हटने के बाद कांग्रेस को मजबूत स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है |  खण्डूड़ी , कोश्यारी  और निशंक के केंद्र में जाने के बाद से राज्य में  दूसरी पंक्ति में भाजपा का बड़ा जनाधार वाला कोई ऐसा नेता नहीं बचा है जिसके करिश्मे के बूते भाजपा की वैतरणी पार हो सके लिहाजा भाजपा आलाकमान भी अब 11, अशोका रोड में इस बात को लेकर मंथन करने में जुटा है कि भाजपा की इस त्रिमूर्ति का साथ लिए बिना 2017 में भाजपा का बेडा पार लगना नामुमकिन है लिहाजा वह भी फूंक फूक कर कदम रख रही है |

 पहाड़ों में अभी सर्द मौसम चल रहा है और यहाँ के मिजाज को देखते हुए इस बात की संभावना प्रबल हैं कि अगले बरस  चुनावी डुगडुगी बज जाए | ऐसे माहौल में बिहार गंवाने के बाद भाजपा उत्तराखंड में खण्डूड़ी के करिश्मे को मैजिक बनाने की संभावनाओं पर मंथन करने में लगी हुई है | हरियाणा , महाराष्ट्र और झारखंड,जम्मू से इतर उत्तराखंड में किसी चेहरे को प्रोजेक्ट न करने की अपनी रणनीति को उसे सिरे से बदलने को मजबूर होना पड़ सकता है |जानकार भी मानते हैं कि उत्तराखंड की मुख्य लड़ाई हिमाचल सरीखी ही रही है और यहाँ की राजनीती भी भाजपा और कांग्रेस के इर्द गिर्द ही घूमती रही है लिहाजा किसी को प्रोजेक्ट करने से मुकाबला रोचक हो सकता है | उत्तराखंड में बारी बारी से हर 5 बरस में यह दोनों राष्ट्रीय दल अपनी सरकार बनाने के लिए सामने आते रहे हैं | भाजपा में खण्डूड़ी 75 पार कर चुके हैं लिहाजा वह मोदी की टीम के खांचे में फिट नहीं बैठते |  मोदी के मंत्रिमंडल में शामिल होने की उनकी संभावनाएं उत्तराखंड से सबसे प्रबल थी लेकिन उनकी उम्र बड़ी बाधक बन गई थी लेकिन भाजपा आलाकमान देर सबेर अब इस बात को समझ रहा है कि उत्तराखंड के चुनावी समर में खण्डूड़ी उसका तुरूप का इक्का एक बार फिर से साबित हो सकते हैं लिहाजा कई पार्टी के बड़े नेता उनके नेतृत्व में रावत सरकार के खिलाफ न केवल बड़ी  जंग लड़ने का मन बना रहे हैं बल्कि चुनावी चेहरे के रूप में एक्शन मोड में जनरल खण्डूड़ी को लाने का मन बना रहे हैं | पार्टी के अंदरूनी सर्वे में भी खंडूरी 75 की उम्र  पार होने के बाद भी मुख्यमंत्री की पहली पसंद आज भी बने हैं तो इसका बाद कारण उनकी साफगोई है | आज भी खंडूड़ी की  पूरे राज्य में मजबूत पकड़ रही है | साथ ही संघ का आशीर्वाद अब भी उनके साथ है | भाजपा में अटल आडवाणी और डॉ जोशी युग भले ही ढलान पर हो लेकिन मार्गदर्शक मंडल के आडवाणी और डॉ जोशी की गुड बुक में आज भी खण्डूड़ी का नाम लिया जाता है जिसका कारण राजनीति में उनका समर्पण और ईमानदारी रही है जिसके तहत अतीत में वाजपेयी सरकार में खण्डूड़ी स्वर्णिम चतुर्भुज योजना के आसरे पूरे देश में नई लकीर खींच दी और खुद यू पी ए सरकार ने भी इस बात को माना केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री के तौर पर खण्डूड़ी के कार्यकाल में सडकों का बड़ा जाल न केवल बिछा बल्कि प्रतिदिन कई किलोमीटर सड़क ने कुलांचे मारे जिसके आस पास वर्तमान मोदी सरकार के कैबिनेट मंत्री तक भी नहीं फटक सकते | उत्तराखंड में अपने दूसरे टर्म में खण्डूड़ी ने जिस अंदाज में सरकार चलाई उसकी मिसाल आज तक देखने को नहीं मिलती |  उस दौर को याद करें तो ना केवल नौकरशाही उनसे खौफ खाती थी बल्कि माफियाओं और बिल्डरों के नेक्सस को तोड़ने में उन्होंने  पहली  बार सफलता पाई  जिसके चलते खंडूरी ने बेदाग़ सरकार चलाने में सफलता पाई |

भाजपा में इस बात को लेकर मंथन चल रहा है खंडूरी को साधकर उत्तराखंड में हरीश सरकार को चुनौती दी जाए | उत्तराखंड में किसी को सी एम के रूप में प्रोजेक्ट करने की  बिसात जिस तरह उलझती ही जा रही है और दावेदारों की भारी भरकम फ़ौज हर दिन दिल्ली दरबार में हाजरी लगा  रही है उसके मद्देनजर शायद भाजपा आलाकमान अब खुद अपना फैसला आने वाले दिनों में सुनाये जिसके तहत  खण्डूड़ी को चुनाव समिति की कमान सौंपी जा सकती है ।पिछले दिनों  भाजपा के एक गुप्त सर्वे में भाजपा की चुनावी संभावनाओं पर मंथन हुआ है जिसमे यह बात  खुलकर सामने आई है अगर मजबूत विकल्प पर भाजपा ने विचार नहीं किया तो हरीश रावत 2017 में कांग्रेस की उत्तराखंड में दुबारा वापसी करने में सक्षम हैं | इस गोपनीय सर्वे और फीड  ने संघ मुख्यालय नागपुर से लेकर 11 अशोका रोड तक हलचल मचाने का काम शुरू कर दिया है | अब इसी को ध्यान में रखकर भाजपा में एक बार फिर खण्डूड़ी जरूरी बन गए हैं | पार्टी के अंदरूनी सर्वे में भी यह खुलासा हुआ है खण्डूड़ी को प्रोजेक्ट कर चुनाव लड़ने में भाजपा हरीश रावत के मुकाबले में सक्षम है | वैसे जनता की नजर में खण्डूड़ी आज भी सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री हैं और पिछले चुनाव में कोटद्वार में हार के बाद से आम जनता के मन में उन्हें लेकर सहानुभूति की लहर अब भी बरकरार है शायद यही वजह है भाजपा आलाकमान अब इसी सहानुभूति की लेकर को एक बार फिर पार्टी के पक्ष में कैश करने की योजना बना रहा है | यही नहीं भाजपा संगठन प्रभारियों और केन्द्रीय कमेटी के फीड में भी खण्डूड़ी का नाम ऐसे चेहरे के रूप में सामने आ रहा है जो चुनावी बरस में अप्रत्याशित तौर पर भाजपा का बेडा पार कर सकते हैं और खुद पी एम मोदी खण्डूड़ी के भरोसे समर में कूदने का मन बना रहे हैं |

कांग्रेस आगामी  चुनावों में हरीश रावत को फ्रीहैंड देने के मूड में है यानी कांग्रेस में टिकटों के  चयन से लेकर प्रचार प्रसार का पूरा जिम्मा हरीश रावत के इर्द गिर्द ही सिमटेगा और वही नेता ज्यादा टिकट पाने में कामयाब रहेगा जिसकी निकटता हरीश रावत के साथ होगी लिहाजा भाजपा भी समझ रही है चुनाव समिति की कमान खण्डूड़ी के जिम्मे देने के साथ ही चुनावी चौसर उत्तराखंड में मजबूती के साथ बिछ सकती है । अब विधान सभा  चुनावों में बहुत कम समय बचा है लिहाजा भाजपा किसी भी तरह टिकटों के चयन और बिसात बिछाने में पीछे नहीं रहना चाहती | भाजपा में बड़ा खेमा ऐसा है जो हरीश रावत की सधी हुई चालों से इस समय परेशान है | हरीश रावत जनता के बीच जाकर जिस तरह पहाड़ों से लेकर मैदान तक में लोगों के बीच अपनी योजनाओं को लागू कर रहे हैं उसके देर सबेर परिणाम कांग्रेस के हक़ में मिलने तय हैं | ऐसे में भाजपा किसी लो प्रोफाइल नेता तो अगर हरीश रावत के मुकाबिल खड़ा करती है तो पार्टी बमुश्किल दहाई वाला आंकड़ा छू पाएगी |  ऐसे में पार्टी अनुभवी मुख्यमंत्री  खंडूरी  को सामने रख हरीश सरकार के खिलाफ माइलेज लेना चाहती है |

चुनावी बरस होने के चलते हरीश रावत जहाँ राज्य में युवाओं के लिए  नौकरियों का बड़ा पिटारा खोला है वहीं उनके द्वारा शुरू की गई  योजनाओं  के शुरुवाती परिणाम कांग्रेस के हक़ में जाते दिख रहे है | यही नहीं पर्वतीय इलाकों में पलायन रोकने की दिशा में स्थानीय उत्पाद को बढ़ावा देने के आलावे  कई योजनाये अपने पिटारे में पेश की गई है जिससे पहाड़ और मैदान में भेद समाप्त हो रहा है और पहली बार खांटी कांग्रेसी मुख्यमंत्री हरीश रावत उत्तराखंड के जनसरोकारों से न केवल जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं बल्कि पलायन को लेकर चिंतित नजर आ रहे हैं | वह पहाडी जनभावनाओं के अनुरूप आने वाले दिनों में गैरसैण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का बड़ा दाव चुनावों से ठीक पहले खेलने की कोशिशों में जुटे हैं ताकि 2017 में पहाड़ों में कांग्रेस मजबूत हो सके |चुनावी बरस में रानीखेत और डीडीहाट के लोगों को जिला की सौगात मिलने के आसार दिख रहे हैं  |  यही नहीं 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद जिस अंदाज में दिन रात काम कर रावत ने केदारनाथ का पुनर्निर्माण किया है वह काबिलेतारीफ है और पहली बार आपदा से केदारनाथ धाम उबरा है | यही वजह है इस बरस केदारनाथ की यात्रा पर पिछले बरस के मुकाबले भक्तों की भीड़ बहुत अधिक रही | खुद केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती रावत सरकार के द्वारा केदारघाटी में किये गए पुनर्निर्माण कार्यों से संतुष्ट हैं | 

 भाजपा की असल परेशानी उत्तराखंड में यहीं से शुरू होती है | राज्य में कांग्रेस सरकार को घेरने के कई मौके आये लेकिन  भाजपा हर बार चूक गई इसका बड़ा कारण खण्डूड़ी, कोश्यारी और निशंक का सांसद बन जाना रहा लिहाजा कोई नेता हरीश सरकार के खिलाफ बयानबाजी के अलावे मोर्चा नहीं खोल सका | ऐसा नहीं है कि उत्तराखंड में हरीश रावत सरकार को घेरने के कई मौके आये  | आबकारी नीति से लेकर खनन, माफियाओं के बड़े नेटवर्क की सक्रियता से लेकर जमीनों को खुर्द बुर्द करने का खुला खेल रावत सरकार के कार्यकाल में ना केवल चला है बल्कि हर विभागों में अरबों के वारे न्यारे हुए हैं लेकिन भाजपा राज्य में मित्र विपक्ष की छवि ही बना पाई है | हरीश रावत को वह उनके सचिव शाहिद के स्टिंग के जरिये घेरने में भी पूरी तरह विफल जहाँ रही वहीँ इस दौर में आपदा और खनन सरीखे बड़े मुद्दों में सिवाए बयानबाजी और प्रेस कांफ्रेंस के भाजपा हरीश रावत सरकार के कोई आन्दोलन भी खड़ा नहीं कर सकी है |  हरीश सरकार की ऍफ़ एल 2 नीति भी विवादों से भरी रही है और चंद लोगों को लाभ पहुचाने के खुला खेल जो कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में चला है उससे सरकार की नीयत में खोट जाहिर हुआ है ।  भाजपा कांग्रेस की बगावत  को भी हवा देने में पूरी तरह विफल रही । उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन के बाद हरीश रावत मजबूती के साथ जनता के बीच नायक के तौर पर उभरे हैं । उनके दमदार  नेतृत्व से  प्रदेश में भाजपा की धार एक बार फिर से  कुंद हुई है | यही कारण है चुनावी बरस में  आलकमान खण्डूड़ी को लेकर अब  फिर से अपने पत्ते फेंटने लगा है और भाजपा को भी लगता है अगर खण्डूड़ी  को आगे किया जाता है  तो राज्य में भाजपा की वापसी संभव  है|   विरोधी भी मान रहे हैं  उत्तराखंड के बदलते हालात में खण्डूड़ी ही एक मात्र ऐसा चेहरा  बन रहे हैं जो पार्टी के नायक बनकर हरीश रावत सरकार को संकट में डाल सकते हैं |संभवतया खण्डूड़ी के चेहरा बनाये जाने के बाद कांग्रेस को भी अपनी रणनीति बदलने को मजबूर होना पड़ जाए क्युकि खण्डूड़ी सरकार की पाक साफ़ छवि रही है और दूसरे टर्म में जनता से जुड़े  कई बड़े निर्णय लिये गये थे। खण्डूड़ी की ईमानदार छवि ने जहाँ  मजबूत लोकायुक्त की सौगात अन्ना की तर्ज पर  पूरे राज्य को दी वहीँ उनके शासन में लूट खसौट पर रोक लगी | माफियाओं  और बिल्डरों  की लाबी उनसे जहाँ खौफ खाने लगी वहीँ राज्य की बेलगाम नौकरशाही पहली बार पटरी पर भी आई |  यही नहीं ट्रांसफर के जिस उद्योग ने पिछली सरकारों के सामने बड़े कुलाचे मारे वह  स्थानांतरण कानून की शक्ल ले पाया जिससे नेताओं की लूट खसोट पर भी रोक लगी | सरकारी नौकरियों में साक्षात्कार की व्यवस्था खत्म करने से लेकर राज्य की बेशकीमती जमीनों को बाहरी व्यक्तियों को देने पर रोक और गरीबों को सस्ता राशन देने की योजनाओं के आसरे उन्होंने उत्तराखंड में नई लकीर खींचने का काम किया | उत्तराखण्ड में अन्ना टीम के मुताबिक लोकायुक्त बिल को सदन में पारित करा मुख्यमंत्री बीसी खण्डूड़ी ने प्रदेश में लोगों के बीच अलग छवि बनाने के साथ ही यह बताने में कोई कसर नहीं छोडी भ्रष्ट सियासत में जनता के हितों को प्राथमिकता देना उनका पहला कर्तव्य है ।

उत्तराखण्ड में मुख्यमंत्री की दूसरी पारी भ्रष्टाचार के खिलाफ जिस अंदाज में उन्होंने खेली इससे उनकी छवि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाले एक योद्धा के रूप में आम जनता में बनी | खण्डूड़ी ने अपने दूसरे टर्म में ताबड़तोड़ फैसले लिए। उन्होंने अन्ना टीम के साथ विचार- विमर्श कर एक सशक्त लोकपाल कानून बना डाला। राज्य में ट्रांसफर उद्योग पर रोक लगाने की नीयत से एक ऐसा कानून तैयार किया जिससे सरकारी कर्मचारियों को भारी राहत मिली | लोकपाल कानून बनाने से खण्डूड़ी की छवि में जबरदस्त सुधार हुआ। भाजपा ने 2012 में खण्डूड़ी पर दांव लगाया लेकिन पार्टी के कुछ नेताओं के भीतरघात ने उन्हें हरा दिया | भाजपा अगर 2017 में  सत्ता में वापसी चाहती है तो  अब खण्डूड़ी पर बड़ा जुआ उसे खेलना ही होगा |  शायद यही वजह है आज भी केंद्रीय नेतृत्व की नजर में भाजपा के भीतर बीसी खण्डूड़ी 75 पार होने के बाद भी उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार के रूप में उभर रहे हैं और पार्टी के भीतर  खण्डूड़ी के हाथ चुनाव समिति की कमान देने को लेकर सियासी सरगोशियाँ तेज हैं | जो लकीर अपने राज्य में पाक साफ़ ईमानदार सरकार के नाम पर खण्डूड़ी ने अपने कार्यकाल में खींची  उससे उनकी सरकार ने जनता के दिलो में अलग छाप छोडी  वह निश्चित ही आने वाले चुनावों में भाजपा को संजीवनी देने का तो काम तो करेगी ही | यह अलग बात है कांग्रेस ने खण्डूड़ी की खींची लकीर को मिटाने की कोशिश की है |

पहले दौर के पायलट सर्वे और फीड के बाद भाजपा बम बम है | भाजपा से जुड़े सूत्रों की मानें तो राज्य में विधानसभावार उम्मीदवारों और सिटिंग एम एल ए को लेकर पार्टी अब एक फाइनल सर्वे करने जा रही है जिसके सम्पन्न होने के बाद  टिकटों को लेकर रायशुमारी की जाएगी | इस सर्वे में पार्टी किसी चेहरे पर दाव खेलने के बारे में जनता की  नब्ज टटोलने की भी कोशिश करेगी  | वैसे अब तक राज्य गठन के बाद हुए हर एजेंसी के सर्वे में खण्डूड़ी ही भाजपा में सब पर भारी पड़े हैं और आज भी लोकप्रियता के मामले में वह उत्तराखंड के सभी मुख्यमंत्रियों पर भारी पड़ते हैं |  खुद सत्तारूढ़ कांग्रेस के नेता भी इस बात को मानते हैं हरीश रावत के मुकाबले के लिए अगर भाजपा में खण्डूड़ी सामने लाये जाते हैं तो उत्तराखंड में मुकाबला कांटे का रहेगा क्युकि उनकी लोकप्रियता हरीश रावत की तरह पूरे राज्य में है | ऐसे में देखना दिलचस्प होगा क्या आने वाले दिनों में भाजपा उत्तराखंड में खण्डूड़ी को सीधे प्रोजेक्ट कर हरीश रावत सरकार के खिलाफ अपना ब्रह्मास्त्र छोडती है या चुनाव समिति की कमान सौपकर उन्हें भावी मुख्यमंत्री के तौर पर आगे रखती है ?

Monday, 10 October 2016

मैथ्यू का कहर




कैरिबियाई देश हैती इस समय मैथ्यू के कहर से परेशान है । मैथ्यू बीते 50 बरस का अब तक का सबसे ताकतवर समुद्री तूफान है जिसने लोगों को यह बताया है प्रकृति की मार के आगे  इन्सान कितना बेबस है | इस तूफान से सबसे ज्यादा नुकसान हैती के ग्रामीण इलाकों में हुआ है जिनका संपर्क लगभग कट चुका है और तूफान की  वजह से जान गंवाने वालों की संख्या बढ़कर हजार पार हो गई है। तूफ़ान की भयावहता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है अब तक कई लोग इस तूफ़ान से अकाल मौत को प्राप्त हुए हैं तो बड़ी संख्या में पशु पक्षी भी मारे गए हैं।  हैती का जेरेमे शहर पूरी तरह तबाह हो चुका है तो वहीँ सूद में 30000 घर प्रभावित हुए हैं | पोर्ट-ओ-प्रिंस बहुत अधिक प्रभावित हुआ वहीं दक्षिणी हिस्से मे बड़े पैमाने में  तबाही हुई है ।

आर्थिक तंगी से जूझ रहा हैती मानो मैथ्यू की मार से  ठहर-सा गया है। स्कूल, कॉलेज, अस्पताल और दुकानें सबका नामोनिशान मिट चुका है | लोगों के पास खाने के लाले पड़े हैं तो लोग आसमान की तरफ ताक रहे हैं किसी तरह बरसात और तेज हवाएं रुक जाए और उनको इमदाद मिल जाए | छोटे से इस कैरिबियाई देश की विभीषिका इतनी भीषण है कि पहली बार हैती में राष्ट्रपति के चुनाव स्थगित करने को मजबूर होना पड़ रहा है | अंदाजा नहीं लग पा रहा है  मलबे में सड़क है या सडकों में मलबा | इतिहास में पहला मौका है कि कुदरती तूफ़ान ने पूरे कैरिबियाई शहर पर मानो आपातकाल लगा दिया है |  संयुक्त राष्ट्र के उप महासचिव और हैती के प्रमुख प्रतिनिधि मोराड वहबा ने इसे साल 2010 के भूकंप के बाद सबसे बड़ी आपदा बताया है ।  जनता आज दो जून की रोटी के लिए तरस रही है और लोग आसमान की तरफ ताक रहे हैं किसी तरह बरसात रुक जाए ताकि उन्हें  खाने की रसद मिल सके | अपने लोगों के बीच फंसे लोगों का रो रोकर बुरा हाल है | जिधर दूर दूर तक नजर जाते है वहां पानी पानी ही नजर आता है | बस राहत और बचाव कार्यों में कोई नजर  नही आ रहा है क्युकि ऐसे माहौल में आपरेशन हेलिकोप्टर से ही चलाये जा सकते हैं लेकिन यह भी तभी संभव  है जब मौसम साफ़ हो | 

 हैती से पहले तूफान ने जमैका, क्यूबा, बहामा और डोमिनिक रिपब्लिकन में भी भारी तबाही मचाई थी लेकिन सबसे ज्यादा नुकसान हैती में हुआ है जहां हजारों लोग बेघर हो गए और  जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया । कैरेबियाई देश हैती में भारी तबाही मचाने के बाद चक्रवाती तूफान 'मैथ्यू' अमेरिका पहुंच गया । इसके चलते अमेरिका में 3,800 से ज्यादा उड़ानों को रद्द करने पर मजबूर होना पड़ा है।  तूफान के कारण फ्लोरिडा में तेज  हवाएं चल रही हैं और भारी बारिश हो रही है। यही हाल जार्जिया और साउथ कैरोलिना प्रांत का भी है जहाँ हवाओं ने लोगों का जीना मुहाल कर दिया है | घरों में बिजली नहीं है तो पानी का भीषण संकट खड़ा हो गया है |  ऐसा मौका पहली बार आया है जब फोर्ट लाउडर्डेल हॉलीवुड एयरपोर्ट को 2005 के बाद पहली बार बंद किया गया है। । फ्लोरिडा में आपात स्थिति घोषित कर दी गई है।  छह लाख से ज्यादा घरों में लोग बिना बिजली के रह रहे हैं। तूफान के चलते 130 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से हवाएं चल रही हैं और तेज बारिश हो रही है। जार्जिया और साउथ कैरोलिना में भी तेज आंधी चल रही है। फ्लोरिडा में आपात स्थिति की घोषणा की गई है।सरकारें मुआवजे और पुनर्वास की व्यवस्था में लगी है तो वहीँ चारों तरफ पानी पानी होने से राहत और बचाव कार्यों  में गति नहीं आ पा रही है वही मुश्किल हालातों में आपदा प्रबंधन भी सही तरीके से नहीं हो पा रहा | सड़कें पानी से लबालब भरी पड़ी  हैं तो शहर का भी पानी से बुरा हाल है | बिजली नहीं है तो लोग खाने के लिए परेशान हैं | मोबाइल टावरों में पानी भर गया है जिससे लोग अपने नाते रिश्तेदारों से सीधे कट गए हैं | हजारों लोगों का आशियाना छिन चुका है और उनका जीवन पटरी पर आना अभी थोडा मुश्किल लगता है क्युकि इस आपदा से वह शायद ही उबर पाएं | तूफान से हैती में बुरी तरह से बुनियादी ढांचा क्षतिग्रस्त हो गया है और हजारों की संख्या में लोग विस्थापित हुए हैं । असल में प्राकृतिक आपदाओं के आगे हम हर बार बेबस हो जाते हैं और इससे निपटने की हमारे पास कोई कारगर तैयारिया  नहीं होती है |  हमें यह भी मानना पड़ेगा विकास की चकाचौध तले हमने  पिछले कई बरसों से प्रकृति का जिस गलत तरीके से विदोहन किया है आज हम उसी की मार झेलने पर मजबूर हैं जो हमें विनाश की तरफ ले जा रहा है |पूरे विश्व में कमोवेश एक जैसे हालत हैं जिसमे प्रकृति से जुड़े मुद्दों की अनदेखी हो रही है और हर जगह को औने पौने दामों पर खुर्द बुर्द करने का खुला खेल चल रहा है और कंक्रीट का जंगल बनाने की तैयारियां हो रही है |  पिछले कुछ वर्षो से मौसम का मिजाज लगातार बदलता ही जा रहा है जिस कारण पूरी दुनिया में अप्रत्याशित परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं |  यह स्पष्ट हो जाता है कि यह  सब जलवायु परिवर्तन की वजह से हो रहा है ।  ठण्ड का मौसम शुरू होने को है लेकिन कहीं बेमौसम फल और फूल उग आये हैं तो कहीं भीषण बरसात ने कहर बरपाया हुआ है | मौसम किस करवट पूरे विश्व में बैठ रहा है यह इस बात से समझा जा सकता है कि मौसम चक्र के बदलते रूप से दुनिया के कई देश इस समय प्रभावित हैं | सुनामी, कैटरीना, रीटा, नरगिस, हुदहुद और अब मैथ्यू आदि परिवर्तन की इस बयार को पिछले कुछ वर्षो से ना केवल बखूबी बतला रहे है बल्कि  गौमुख , ग्रीनलैंड, आयरलैंड और अन्टार्कटिका में लगातार पिघल रहे ग्लेशियर भी ग्लोबल वार्निंग की आहट को करीब से  महसूस भी कर रहे हैं । आज पूरे विश्व में वन लगातार सिकुड़ रहे हैं तो वहीँ किसानो का भी इस दौर में खेतीबाड़ी से सीधा मोहभंग हो गया है । अधिकांश जगह पर जंगलो को काटकर जैव ईधन जैट्रोफा के उत्पादन के लिए प्रयोग में लाया जा रहा है तो वहीँ पहली बार जंगलो की कमी से वन्य जीवो के आशियाने भी सिकुड़ रहे हैं जो  वन्य जीवो की संख्या में आ रही गिरावट के जरिये महसूस की जा सकती है वहीँ औद्योगीकरण की आंधी में कार्बन के कण वैश्विक स्तर पर तबाही का कारण बन रहे हैं तो इससे प्रकृति में एक बड़ा  प्राकृतिक असंतुलन पैदा हो गया है और इन सबके मद्देनजर हमको यह तो मानना ही पड़ेगा जलवायु परिवर्तन निश्चित रूप से हो रहा है और यह सब ग्लोबल वार्मिंग की आहट है ।वैज्ञानिको का मानना है कि कार्बन डाई आक्साइड के उत्सर्जन को कम करने के लिए विकसित देशो को किसी भी तरह फौजी राहत दिलाने के लिए कुछ उपाय तो अब करने ही होंगे नहीं तो दुनिया के सामने एक बड़ा भीषण संकट पैदा हो सकता है और यकीन जान लीजिये अगर विकसित देश अपनी पुरानी जिद पर अड़े रहते हैं तो तापमान में भारी वृद्धि दर्ज होनी शुरू हो जायेगी ।
वैसे इस बढ़ते तापमान का शुरुवाती असर हमें अभी से ही दिखाई देने लगा है । आज दुनिया में जो जलवायु परिवर्तन हुआ है उसमे बड़े देशों की हिस्सेदारी कुछ ज्यादा है । जिस तकनीक के आसरे विकसित देशों ने ताकत हासिल की आज उसी के चलते दुनिया में संकट मडरा रहा है | आज जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव को हर देश भुगत रहा है | कई देशों के सामने खाद्यान का संकट खड़ा है वहीँ सूखा , बाढ़ और अतिवृष्टि ने इस दौर में समूची ग्रामीण कृषि अर्थव्यवस्था वाले देशों  का तो बंटाधार कर दिया है | आर्थिक सुधार और  औद्योगीकरण को गति देने के साथ ही ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा बढ़ी है जिसके चलते पूरे विश्व के मौसम में परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं । कही भीषण बरसात से लोगों का जीना  मुश्किल होता जा रहा है तो कहीं सूखा , अकाल और भुखमरी  बढ़ रही है । असल में इसके पीछे अंधाधुंध विकास जिम्मेदार है ।  आज के दौर में विकास की अन्धाधुंध दौड़ में अपने स्वार्थ के लिए क्रोनी कैपिटलिज्म के इस दौर में मुनाफे का खुला खेल  विश्व में बेख़ौफ़ चल रहा है  लेकिन उचित प्रबंधन के चलते  हम उस समय बेबस हो जा रहे है  जब आपदाएं आती हैं  |हाल के वर्षों में पर्यावरण को सबसे ज्यादा नुक्सान मानव ने ही पहुंचाया है ।  उसने  प्राकृतिक संसाधनों का जमकर विदोहन  किया  | आज आलम यह है कि याराना पूँजी का  खुला खेल  विश्व  के हर शहर में सरकारों को भरोसे में लेकर खेला जा रहा है जहाँ तमाम पर्यावरणीय मानकों को ताक पर रखते हुए विकास की चकाचौध तले खुशहाली लाने के शिगूफे छोड़े जा रहे हैं लेकिन यह सब हमारे लिए आने वाले दिनों में बड़ी विभीषिका का कारण बन सकता है |

  पिछले कुछ समय से  दशकों से मौसम में तरह तरह के बदलाव हमें देखने को मिल रहे हैं और इसी जलवायु परिवर्तन के असर का परिणाम हमें पूरी दुनिया में देखने को मिल रहा है जहाँ वह समय समय पर  रीटा, कैटरीना , नरगिस की मार झेलती है तो कहीं हुदहुद और मैथ्यू सरीखे चक्रवाती तूफान और भीषण बरसात ने शहर की रफ़्तार थाम देती है | मौजूदा दौर में विकास की अवधारणा शहरीकरण पर टिकी है और आने वाले बरसों में विश्व  की  आबादी की  जरूरतें बढेंगी लिहाजा  पर्यावरण की इसी तरह अनदेखी होती रही तो रीटा ,सैंडी  कैटरीना , हुदहुद , मैथ्यू  सरीखी आपदाओं की पुनरावृति दुनिया में होनी तय है | अगर अभी भी हम नहीं चेते तो ऐसे हादसे बार बार होते रहेगे जिनमे हजारों लोग काल के गाल में समाते रहेगे और सरकारें मुआवजे बांटकर अपने हित साधते रहेगी | अब समय आ गया है जब सरकारों को समझना होगा वह किस तरह का विकास चाहते हैं ? ऐसा विकास जहाँ प्रकृति का जमकर दोहन किया जाए या फिर ऐसा जहाँ पर्यावरण की भी फिक्र करते हुए विकास की बयार बहाई जाए  । इस मसले पर अब कोई नई लकीर हमें खींचनी ही होगी क्युकि मानव सभ्यता प्रकृति पर ही टिकी हुई है अगर प्राकृतिक संसाधनों का यूँ ही विदोहन होता रहा तो मानव के सामने खुद बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा | मैथ्यू इस दिशा में छिपा एक बड़ा सन्देश है ।

Sunday, 18 September 2016

फिर पाकिस्तान ने दिया जख्म





पाकिस्तान ने एक बार फिर अपना घिनौना  चेहरा पूरी दुनिया के सामने उजागर कर दिया है  । जम्मू-कश्मीर के बारामूला में स्थित उरी सेक्टर में रविवार सुबह आतंकियों ने सेना के मुख्यालय पर आत्मघाती हमला कर दिया जिसमे 17 सैनिक शहीद हो गए  । जम्मू-कश्मीर के उरी सेक्टर में 12वीं ब्रिगेड की छावनी पर आत्मघाती हमले ने  भारतीय सेना को जबरदस्त नुकसान पहुचाया ।  शहीद होने वाले  17 जवान डोगरा रेजीमेंट के थे। इस फिदायीन हमले में 19 जवान जख्मी हुए है जिनमें कुछ की हालत बेहद गंभीर बनी हुई है। 

 ऐसा करके पाक  ने  एक बार फिर  आतंक का अपना चेहरा पूरी दुनिया के सामने उजागर कर दिया ।  असल में इस कार्यवाही ने एक बार फिर साबित कर दिया है पाक में भले ही नवाज की अगुवाई में सरकार चल रही  है लेकिन अभी भी कमोवेश वैसी ही स्थितियां हैं जैसी पहले हुआ करती थी । आज भी पाक में चलती है तो सेना और चरमपंथियों  की  और  उसके बिना पत्ता तक नहीं  हिलता  । नवाज भले ही अंतरराष्ट्रीय मंचों पर खुद को आतंक से प्रभावित देश बताते हुए भारत के साथ  सम्बन्ध सुधारने की दुहाई देते रहते हो लेकिन उरी सेक्टर की इस कार्यवाही के शुरुवाती संकेत तो यही कहानी कह रहे हैं इस कार्यवाही को पाक के कट्टरपंथियों और आतंकियों का खुला समर्थन था जो भारत के साथ सम्बन्ध किसी कीमत पर ठीक नहीं होने देना चाहते हैं और कश्मीर को अस्थिर करने  की नापाक कोशिश करने में लगे हैं ।  यह हमला ठीक नवाज के अमरीका रवाना होने के बाद किया गया है जिससे जाहिर होता है बिना सेना को भरोसे में लिए आतंकियों ने इसे अंजाम दिया है | 
  
 डोगरा  रेजिमेंट  के जवानों के  साथ की गई  कार्यवाही ने हमें यह सोचने के लिए मजबूर कर दिया है अब पकिस्तान के साथ  किस मुह से हम दोस्ती का हाथ बढ़ाये पाक  के साथ दोस्ती का आधार क्या हो वह भी तब जब वह लगातार भारत की पीठ पर छुरा भौंकते  हुए लगातार विश्वासघात ही करता जा रहा है । इस दुस्साहसिक कारवाई  की जहाँ पूरे देश में निंदा  हुई है वहीँ आम आदमी अब भारतीय नीति नियंताओ से सीधे सवाल पूछ रहा है कि अब समय आ गया है जब पकिस्तान से सारे रिश्ते तोड़ लिए जाएँ  और उसे अंतरराष्ट्रीय मंचो पर लताड़ा  जाए  । पठानकोट के बाद अब तक का यह सबसे बड़ा हमला है जिसमे कठघरे में सीधे पाक खड़ा है । हमेशा की तरह  अगर इस बार  भी केंद्र सरकार  धैर्य धारण करने के  लिए कदमताल करने की सोचेगी  तो यह सही  नहीं होगा क्युकि  लगातार होते हमलो से हमारा  धैर्य अब जवाब दे रहा है ।  इस घटना से पाक की मंशा धरती के स्वर्ग कश्मीर में उन्माद फैलाने की ही रही है शायद इसकी आहट नवाज और कियानी के बीच बीते कुछ दिनों पहले हुई गुप्तगू के तौर पर दिखाई देने लगी थी जिसमे उन्होंने अमरीका रवानगी से  पहले  टेबल पर कश्मीर मसले की चर्चा की थी । नवाज का यू एन ओ में भाषण 21 सितम्बर को होना है । अब ऐसे हमलों के जरिये पाक अपनी स्टेट पालिसी के तहत कश्मीर में उन्माद का वातावरण पूरी दुनिया को दिखाना चाहता है । उरी सेक्टर पर  तड़के हमला बोलने आये  सभी आतंकी  जम्मू-कश्मीर में अशांति फैलाना चाहते थे और इन्होंने इसी मकसद से घुसपैठ की । बुरहान वाणी के जुलाई में मारे जाने के बाद  से ही  घाटी में हिंसा का दौर जारी है और ताजा हमले ने पाक की संलिप्तता को फिर से उजागर कर दिया है जहाँ गृह मंत्रालय से जुड़े लोगों की जानकारी से स्पष्ट हो रहा है कि यह लश्कर का ही फ़िदायीन दस्ता था जिसका मकसद भारतीय सैनिकों के मनोबल को तोडना था | वैसे आतंरिक सुरक्षा पर 16 जुलाई को एक अलर्ट आई बी ने जारी किया था इसके बाद भी उरी पर हमला कई सवालों को मौजूदा दौर में खड़ा कर रहा है | आखिर अलर्ट के बाद भी आतंकी बेस कैम्प तक कैसे पहुंचे यह अपने में बड़ा सवाल बन गया है जिसकी पड़ताल नए सिरे से गृह मंत्रालय को करने की जरूरत है | सवाल तो भोर के उस समय का भी है जिस समय हमारे जवान सो रहे थे उस समय गॉर्ड क्या कर रहे थे ? ऐसे अनेक सवालों के जवाब तो जांच के बाद ही मिल पायेंगे लेकिन इस हमले ने एक बार फिर पाक को कठघरे में खड़ा कर दिया है क्युकि पठानकोट की तर्ज पर आतंकी सीमा पार से ही आये |

        असल में  कारगिल  के दौर में भी पाक  ने भारत के साथ ऐसा ही सलूक किया था  ।  हमारे प्रधानमंत्री वाजपेयी रिश्तो  में गर्मजोशी लाने लाहौर बस से गए लेकिन  नवाज  शरीफ  को अँधेरे में रखकर मिया मुशर्रफ  कारगिल की पटकथा तैयार करने में लगे रहे । इस काम में उनको पाक की सेना का पूरा सहयोग मिला था । इस बार की कहानी भी पिछले बार से जुदा नहीं है । अपने कार्यकाल के अन्तिम पडाव पर खड़े पाक सेनाध्यक्ष अशफाक कियानी  और नवाज भारत के साथ रिश्तो को सुधारने के बजाए अब फिर से  बिगाड़ना चाहते हैं । यह उनके द्वारा दिए गए हाल के बयानों में साफ़ झलका है । अभी कुछ दिनों पूर्व उन्होंने  कहा बकरीद पर हम कश्मीरियों के बलिदान को नजरअंदाज नहीं कर सकते । उन्हें उनके बलिदानों का फल मिलेगा ।  अब ऐसे बयानों से उनकी मंशा भारत को चेताना ही  रही |

नवाज के यू एनओ में भाषण से कुछ दिन पहले हमारी सेना के 17  जवान शहीद हो गए । उरी  की इस कार्यवाही में  पाक सेना  का  फिदायीन आतंकियों को  पूरा समर्थन रहा है । बेशक पाक में सरकार तो नाम मात्र की है वहां पर चलती सेना की ही है और बिना सेना के वहां पर पत्ता भी नहीं हिला हिलता  । कट्टरपंथियों की बड़ी जमात वहां ऐसी है जो भारत के साथ सम्बन्ध सुधरते नहीं देखना चाहती है और कश्मीर को किसी भी तरह अंतर्राष्ट्रीयकरण करना चाहती है ।आखिर कब तक हम पाक के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाते रहेगे  और बातचीत से मेल मिलाप बढ़ायेंगे जबकि हर मोर्चे पर वह हमको धोखा ही धोखा देता आया है । इस घटना के बाद हमारे नीतिनियंताओ को यह सोचना पड़ेगा  अविश्वास की खाई  में दोनों मुल्को की दोस्ती में दरार पडनी  तय है । अतः अब समय आ गया है जब हम पाक के साथ अपने सारे सम्बन्ध तोड़ डालें  और ईंट का जवाब ईट से दें ।  घाटी बुरहान वाणी की मौत के बाद से जहाँ जल रही है वही इस दौर में लोगों के पास काम के भी लाले पड़ गए हैं लेकिन फिर भी हमारी सरकारें वहां हालात सामान्य नहीं कर पा रही हैं । अब समय आ गया है जब  अपने उच्चायुक्त को पाक से वापस बुला लेना  चाहिए ताकि पाक के चेहरे को पूरी दुनिया में बेनकाब किया जा  सके ।

  मुंबई  में 26/11 के हमलो में भी पाक की संलिप्तता पूरी दुनिया के सामने ना केवल उजागर हुई थी बल्कि पकडे गए आतंकी कसाब ने  यह खुलासा  भी किया हमलो की साजिश पाकिस्तान में रची गई जिसका मास्टर माइंड हाफिज मोहम्मद  सईद  था । हमने पठानकोट हमलो के पर्याप्त सबूत पाक को सौंपे भी लेकिन आज तक वह इनके दोषियों पर कोई कार्यवाही नहीं कर पाया  । आतंक का सबसे बड़ा मास्टर माईंड हाफिज पाकिस्तान में खुला घूम रहा है और  भारत  के खिलाफ लोगो को जेहाद छेड़ने के लए उकसा भी रहा है लेकिन आज तक हम पाक को हाफिज के मसले पर ढील ही देते रहे हैं  यही कारण  है वहां की सरकार  उसे पकड़ने में नाकामयाब रही है ।  2001 में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में हमले के बाद उसके जमात उद  दावा ने  कश्मीर के ट्रेंनिग कैम्पों में घुसकर युवको को  जेहाद के लिए प्रेरित किया । अमेरिका द्वारा उसके संगठन  को प्रतिबंधित  घोषित  करने  और उस पर करोडो डालर के इनाम रखे जाने के बाद भी पाकिस्तान  सरकार  ने उसे कुछ दिन लाहौर की जेल में पकड़कर रखा और जमानत पर रिहा कर दिया । आज  पाकिस्तान  उसे   पाक में होने को सिरे से नकारता रहा है जबकि असलियत यह है कि बुरहान की मौत के बाद लगातार वह भारत के खिलाफ जहर उगल रहा है और खुले आम घूम रहा है ।  भारतीय गृह मंत्रालय तो हमेशा उसको ना पकड़ सकने का रोना रोता रहा है ।   भारत के खिलाफ  होने वाली हर  साजिश  को अंजाम देने में उसे पाक की सेना और कट्टरपंथी सगठनों  का पूरा सहयोग मिल रहा है  ।  26 / 11 के हमलो के बाद भारत ने  जहा कहा था जब तक 26 /11 के दोषियों पर पाक  कार्यवाही नहीं करेगा तब तक हम उससे कोई बात  नहीं  करेंगे लेकिन आज तक उसके द्वारा दोषियों पर कोई कार्यवाही ना किये जाने के बाद भी हम उस पर कोई कार्यवाही नहीं कर पा  रहे हैं तो यह हमारी लुंज पुंज विदेश नीति वाले रवैये को उजागर करता है ।  अब तो  हर घटना में अपना  हाथ होने से इनकार करना पाक का शगल ही बन गया है । लाइन ऑफ़ कंट्रोल में अक्सर  सैनिको के बीच  तनाव देखा जा सकता है और फायरिंग की घटनाएं आये  दिन होती रहती हैं । भारतीय सेना में घुसपैठ की कार्यवाहियां अब पाक की सेना आतंकियों के साथ लगातार कर  रही है जो पठानकोट के बाद उरी के हमले में साफतौर पर उजागर हो गयी है । उसे लगता है कश्मीर में अगर हिंसा का ऐसा ही तांडव जारी रहा तो आने वाले दिनों में दुनिया की नज़रों में  कश्मीर  आ जायेगा । अतः ऐसे हालातो में वह अब लश्कर और हिजबुल मुजाहिदीन जैसे संगठनो को पी ओ  के  में भारत के खिलाफ एक  बड़ी जंग लड़ने के लिए उकसा रहा  है जिसमे कई कट्टरपंथी संगठन उसे मदद कर रहे हैं  जो कश्मीर में युवाओं से पत्थर बाजी करवाते हुए अपने मिशन कश्मीर को मजबूती दे रहे हैं । पाक की राजनीती का असल सच किसी से छुपा नहीं है । वहां पर सेना कट्टरपंथियों का हाथ की कठपुतली ही  रही है । सरकार तो नाम मात्र की लोकत्रांत्रिक  है  असल नियंत्रण तो सेना का हर जगह है ।  पाक इस बार यह महसूस कर रहा है अगर समय रहते उसने भारत के खिलाफ अपनी जंग शुरू नहीं की तो कश्मीर का मुद्दा ठंडा पड  जायेगा । अतः वह भारतीय सेना को अपने निशाने पर लेकर कट्टरपंथियों की पुरानी  लीक पर चल निकला है । कश्मीर का राग पाक का पुराना राग है जो दोस्ती के रिश्तो में सबसे बड़ी दीवार है । ऐसे दौर में हमें पाक पर ज्यादा ध्यान देने की जरुरत है । हमारी सेना को ज्यादा से ज्यादा अधिकार सीमा से सटे इलाको में मिलने चाहिए साथ ही कश्मीर को अब पूरी तरह सेना के हवाले किये जाने की जरूरत है ।

 उरी के हमले के बाद अब भारत को पाक के साथ सख्ती से पेश आना चाहिए । उसे किसी तरह की ढील नहीं मिलनी चाहिए । पाक  हमारे धैर्य  की परीक्षा ना ले अब ऐसे बयान देकर काम नहीं चलने वाला क्युकि  इस घटना ने हमारे  सैनिकॊ  के मनोबल को   गिराने का काम किया है । पाक के साथ भारत को अब किसी तरह की नरमी नहीं बरतनी चाहिए और कूटनीति के जरिये अंतर्राष्ट्रीय स्तर  पर उसके खिलाफ माहौल बनाना  चाहिए  साथ ही अमेरिका सरीखे मुल्को से बात कर यह बताना  चाहिए  आतंक के असल सरगना पाकिस्तान  में  पल रहे हैं और आतंकवाद के नाम पर दी जाने वाली हर मदद का इस्तेमाल पाक दहशतगर्दी फैलाने में कर रहा है ।  अगर पाक को विदेशो से मिलने वाली मदद इस दौर में बंद हो जाए तो उसका दीवाला निकल जायेगा । ऐसी सूरत में कट्टरपंथियों के हौंसले भी पस्त हो जायेंगे । तब भारत  पी ओ के में चल रहे आतंकी शिविरों को अपना निशाना बना सकता है ।  माकूल कार्यवाही के लिए यही समय बेहतर होगा ।  अब समय आ गया है जब पाक के खिलाफ भारत  कोई बड़ी कार्यवाही की रणनीति  अख्तियार करे क्युकि एक के बाद एक झूठ  बोलकर पाक हमें धोखा दे रहा है और कश्मीर के मसले के अन्तरराष्ट्रीयकरण  के पक्ष में खड़ा है ।

  आज तक हमने पाक के हर हमले का जवाब बयानबाजी से ही दिया है । भारत सरकार धैर्य संयम  की दुहाई देकर हर बार लोगो के सामने सम्बन्ध सुधारने की बात दोहराती रहती है ।  इसी नरम रुख से पाक का दुस्साहस इस कदर बढ  गया है  कभी वह  पठानकोट तो कभी उरी में हमारे जवानो को निशाना बनाता है और कश्मीर पर मध्यस्थता का पुराना राग छेड़ता  रहता है । यह दौर भारतीय नीति नियंताओ के लिए असली परीक्षा का है  क्युकि  उसी की नीतियां अब पाक के साथ भारत के भविष्य को ने केवल तय कर सकती है बल्कि अंतरराष्ट्रीय  मोर्चे पर यह मामला उसकी कूटनीति के आसरे दुनिया तक पहुच सकता है । कश्मीर की काट के तौर पर पी एम मोदी ने जिस अंदाज में बलूचिस्तान का मसला इस बार के स्वंत्रता दिवस समारोह में उठाया है उससे पाक और चीन की घिग्गी बध गई है । जवाबी कार्यवाही के तहत उसने अब कश्मीर राग की रट लगायी हुई है और  आने वाले 21 सितम्बर को नवाज के यू एन ओ के  भाषण में इसकी झलक दिखाई  पड़ सकती है । भारत की कोशिश अब यह होनी चाहिए यू एन ओ की भरी सभा में पाक को बेनकाब कर उसका हुक्का पानी बंद करवाते हुए  उसे एक आतंकी देश घोषित करवाए । अगर ऐसा होता है तो यह मोदिनोमिक्स की विदेश नीति की बड़ी जीत होगी देखना होगा आने वाले दिनों में हम पाक के प्रति किस तरह का रुख अंतर्राष्ट्रीय मंचो पर अख्तियार करते है । यह  पीएम  मोदी की कूटनीति की बड़ी परीक्षा है । फिलहाल इसका इन्तजार सभी को है ।

Wednesday, 31 August 2016

सियासी बिसात में तार- तार कश्मीर और कश्मीरियत







कश्मीर में हिंसा का तांडव थमने का नाम नही ले रहा | पिछले  करीब डेढ़ महीने से जन्नत  अशांत है। राज्य में आम नागरिकों और सुरक्षाकर्मियों के बीच लगातार झड़पों का सिलसिला जारी है | जिस कारण  सरकार को डेढ़ दशक बाद कश्मीर की सड़कों पर जहाँ बी एस एफ को उतारने पर मजबूर होना पड़ा है वहीँ विपक्षी दलों के एक प्रतिनिधिमंडल ने कश्मीर के हालात पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बातचीत करने के साथ ही सर्वदलीय बैठक का जो दौर शुरू किया उसका अब तक का नतीजा भी सिफर ही रहा है |
 
 केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह कश्मीर  में शांति बहाली के लिए जहाँ  घाटी का रुख कर चुके हैं वहीँ मुख्यमंत्री महबूबा की पी एम मोदी के साथ बैठक के बाद भी कश्मीर के हालत संभाल नहीं पा रहे हैं | आलम यह है कि अलगाववादियों को महबूबा की कड़ी चेतावनी के बाद भी जन्नत में पत्थरबाजी का दौर थमा नहीं है |  बीते सोमवार को कश्मीर घाटी में कर्फ्यू हटाए जाने के ठीक दो दिन बाद हिंसा के तांडव का खुला खेल फिर से शुरू हो गया है |  सुरक्षा बलों के साथ हुई हिंसक झड़प में एक किशोर की मौत हो गई तथा 100 से अधिक व्यक्ति घायल हो गए | भीड़ को तितर-बितर करने के लिए सुरक्षा बलों ने पहले आंसू गैस के गोले छोड़े और पैलेट गन का इस्तेमाल किया ।  जब भीड़ नहीं हटी तो उन्हें गोली चलानी पड़ी |  बुधवार को एक किशोर की मौत के साथ ही घाटी में नौ जुलाई से शुरू हुए इस संघर्ष में मरने वालों की संख्या अब 72 हो गई है, जिनमें दो पुलिसकर्मी भी शामिल हैं |  वहीं  हिंसक संघर्ष में अब तक 11,000 से अधिक लोग घायल हुए हैं जिसमें 7,000 नागरिक और सुरक्षा बलों के 4,000 जवान शामिल हैं | 

दरअसल कश्मीर की सियासत इस समूचे दौर में  उस मुहाने पर जा टिकी है जहां भारत सरकार और घाटी  के बीच संवाद पूरी तरह टूटा हुआ है | अटल बिहारी वाजपेयी के अलावा किसी भी नेता ने कश्मीर के मसले को हल करने की कोई गंभीर कोशिश नहीं की लेकिन मोदी सरकार के आने के बाद भी उस लीक का पता लग पाना मुश्किल दिख रहा है क्युकि वह  अलगाववादियों से बात ना करने का एलान पहले ही कर चुकी है  । असल में कश्मीर में  आए दिन सुरक्षा बलों और आम नागरिकों के बीच अक्सर झड़पें होती रहती हैं | हिज़बुल मुज़ाहिद्दीन के चरमपंथी बुरहान वानी की मौत के बाद जो कश्मीर में हालात बन रहे हैं, उससे लगता है कि  लोग आक्रोशित हैं  । 

 90 के दशक को याद करें तो उस दौर में मुफ़्ती मुहम्मद सईद की बेटी को अगवा किया गया था तब इतनी बड़ी संख्या में लोग बाहर आए थे | जिसके बाद  1993 में हज़रत बल में चरमपंथी छिपे हुए थे जिसे सेना ने घेरे में लिया तो घाटी सुलग गई | फिर 1995 में एक सूफ़ी संत की दरगाह में एक पाकिस्तानी चरमपंथी के छिपने के बाद फिर से कश्मीर जलने लगा | 2008 में अमरनाथ की ज़मीन के विवाद के वक़्त भी काफ़ी बवाल हुआ था और कई महीनों तक प्रदर्शन हुए जिसकी गूंज दिल्ली तक पहुंची | 2010 में एक कथित एनकाउंटर के बाद भी बवाल हुआ जिसमें क़रीब 130 लोग मारे गए और 2013 में अफ़जल गुरु की फांसी के बाद भी कश्मीर में बवाल हुआ जो कुछ समय बाद थम सा गया | लेकिन  ताजा मामला आतंकी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद कश्मीरी युवाओं के फूटे आक्रोश का है जिसे कश्मीर के युवा किसी आइकन से कम नहीं समझते थे | बुरहान वानी का परिवार जमात विचारधारा से काफी प्रभावित था। बुरहान वानी पाकिस्तानी आतंकी संगठन  हिजबुल मुजाहिदीन का सदस्य था। उस पर एक तरफ जमात का मजहबी असर था तो दूसरी तरफ वह 21वीं सदी का वह युवा था जो सोशल मीडिया  का खुलकर इस्तेमाल करने वालों में से एक था । इन दोनों स्थितियों ने बुरहान को हिजबुल का कमांडर बनने में मदद की। वानी ने सोशल मीडिया का सहारा लेकर मजहब से प्रेरित अपनी राजनीतिक विचारधारा को बढ़ावा दिया। इसी के आसरे  वह युवाओं के बीच खासा लोकप्रिय चेहरा बन  गया। जब उसे सेना ने मार गिराया तभी से कश्मीर में हिंसा शुरू हो गई। यह हिंसा अभी भी जारी है।1996 के बाद यहां पहली बार ऐसा हुआ कि किसी चरमपंथी की मौत के बाद इतनी बड़ी संख्या में लोग कश्मीर की  सड़कों पर बाहर आए हैं | इस विरोध प्रदर्शन से कश्मीर के पर्यटन कारोबार को जहाँ करोड़ों का नुकसान हो गया है वहीँ बीते 53 दिनों से लोगों की रोजी रोटी सीधे तौर पर प्रभावित हो रही है जिसकी सुध लेने की जहमत कोई राजनेता इस दौर में लेने को तैयार नहीं है |  इस दौर में जहाँ दुकानों में ताले पड़े हैं वहीँ निजी और सरकारी शिक्षण संस्थान  और कार्यालयों में पसरा सन्नाटा इस बात की गवाही दे रहा है कि कश्मीर में हालात दिन पर दिन कैसे खराब होते जा रहे हैं और सरकार कुछ कर भी नहीं पा रही है | 

बीते दिनों कश्मीर के हालात पर महबूबा और मोदी की मुलाक़ात दिल्ली में हुई थी जिसमे महबूबा ने पीएम मोदी  की तारीफों के कसीदे पढ़ते हुए कहा पी एम मोदी ने कश्मीर के लिए  सभी तरह के जरूरी कदम उठाए हैं। उन्‍होंने याद दिलाया कि पीएम मोदी जब लाहौर से लौटे तो देश को पठानकोट आतंकी हमला झेलना पड़ा।  महबूबा ने कहा कि पीडीपी-बीजेपी गठबंधन की आधारशिला वाजेपई की कश्‍मीर नीति थी।  पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेई की कश्‍मीर नीति को वहीं से आगे बढ़ाना होगा जहां पर इसे रोक दिया गया | वहीँ कांग्रेस ने  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सुझाव दिया है कि उन्हें वार्ता की पहल करनी चाहिए। कांग्रेस की यह टिप्पणी तब आई जब पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम ने कश्मीर  में  प्रतिनिधिमंडल भेजने की वकालत की। 

जानकारों के मुताबिक कश्मीर में हिंसा बढ़ने की एक वजह यह रही कि दक्षिणी कश्मीर के युवा 2010 में हुई हिंसा के बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस से काफी नाराज थे। उन्होंने उमर अब्दुल्ला की सरकार को सत्ता से बेदखल करने के लिए 2014 के विधानसभा चुनाव में पीडीपी को वोट दिया। लेकिन पीडीपी और भाजपा के गठबंधन से इन युवाओं ने अपने आपको ठगा हुआ महसूस किया। इसलिए ये युवा सरकार से खुलकर लड़ने लगे हैं जिसकी मिसाल कश्मीर में   दिखाई दे रही है  | बुरहान की मौत ने आग में घी डालने  का काम किया और  जन्नत को सुलगाने   का काम अलगाववादी संगठनों ने किया। उन्होंने कश्मीर  के मुसलमानों को आक्रोशित कर सड़कों पर उतारा। धीरे-धीरे घाटी  सुलगने लगी। मौजूदा दौर में भारत पाक की बातचीत लम्बे समय से बंद है | पी एम मोदी ने बहुत हद तक अपने शपथ ग्रहण समारोह से हमारे पडोसी पाक को सम्बन्ध सुधारने का हर मौका दिया लेकिन पठानकोट के हमले ने सारी उम्मीदों  पर पानी फिर दिया | दूसरा मोदी केंद्र में प्रचंड बहुमत की सरकार चला रहे हैं | पिछली सरकारों के बातचीत के दौर में अलगाववादी नेता अक्सर शामिल हुआ करते रहे हैं लेकिन ऐसा पहला मौका है जब पी डी ऍफ़ और भाजपा सरकार केंद्र राज्य में सत्तासीन होने के बाद भी अलगाववादियों के लिए बातचीत के दरवाजे बंद कर चुकी है जिससे कश्मीर का मुद्दा अधर में लटक गया है | पाक से जब भी बात होती है तो वह कश्मीर पर खुद को भी बातचीत के लिए आमंत्रित करने की बात करता रहा है लेकिन भारत का स्टैंड इस बात पर साफ़ है जब तक पाक आतंक का रास्ता नहीं छोड़ता तब तक उससे किसी तरह की कोई बात नहीं हो सकती इस कशमकस में कश्मीरियत भी उलझ कर रह गयी है   

इधर भारतीय सरकारी एजेंसियों का भी दावा है कि कश्मीर  में चल रहे हिंसक उपद्रव में पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठनों और एसआई का हाथ है। भीड़ में आतंकी शामिल होकर जवानों पर पेट्रोल बम फेंक रहे हैं जिससे तनाव बढ़ रहा है और इस तनाव से पाक कश्मीर का अन्तराष्ट्रीयकरण करने की दिशा में मजबूती के साथ बढ़ने की तैयारी में है |  जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने भी  कश्मीर में जारी अशांति के बारे में हाल ही में कहा था कि अलगाववादी पाक की शह पर कश्मीर में माहौल को खराब कर रहे हैं। महबूबा ने कहा कि मस्जिदों से लोगों को उकसाने के लिए नापाक पैगाम दिए जा रहे हैं। अलगाववादी सिर्फ अपने स्वार्थ की खातिर ही ऐसा कर रहे हैं। पाक हवाला के जरिए अलगाववादियों को धन दे रहा है जिससे वे गरीब कश्मीरी लोगों विशेषकर युवाओं को उकसा रहे हैं। असल में इस दौर की सबसे बड़ी  मुश्किल यह है कि हर दल कश्मीर के हालात को अपने नजरिये और वोट बैंक की सियासत के अनुरूप देख रहा है | इस गुणा भाग से  राजनेताओ की सियासत बेशक फीकी पड़ने के साथ चमक सकती है  लेकिन इससे समस्या का समाधान होना दूर की गोटी ही लगता है | सियासत ने वास्तव में कभी कश्मीर और कश्मीरियत को गंभीरता से महसूस किया होता तो जन्नत के हालात आज इस कदर  बेकाबू नहीं होते जहाँ 53 दिन लोगों को अपने कमरों की चहारदीवारी में बैठकर नहीं बिताने पडते और उनके सामने दो जून की रोजी रोटी का सवाल भी नहीं घुमड़ता | 

देश के गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कश्मीरियत इंसानियत और जम्हूरियत में यकीन रखने वाले सभी लोगों को आमंत्रित कर वाजपेयी वाली लीक पर कश्मीर में चलना चाहते हैं |शायद यही वजह है एक दो दिन में कश्मीर में 26 नेताओं के प्रतिनिधिमंडल को भेजने पर गहनता से मंथन चल रहा है | खुद राजनाथ ने अब कश्मीर की कमान अपने हाथ में ली है और वह खुद कश्मीर के नेताओं के साथ बातचीत करेंगे जिसमे अलगाववादी नेताओ से भी बातचीत का नया चैनल खोलने पर विचार चल रहा है  | यानी कश्मीर जाने वाले प्रतिनिधि दल के लोगों को कश्मीर के अलगाववादी नेताओं से मिलने की छूट होगी। अगर ऐसा होता है तो कुछ रास्ता निकलेगा इस बात की उम्मीद तो बन ही रही है |तो मोदी सरकार के अब कश्मीर पर नरम रुख का इन्तजार हर किसी को है  | देखना होगा ऊट किस करवट कश्मीर पर बैठता है ? 

Tuesday, 16 August 2016

जनता को निराश किया पीएम ने





आज से ठीक दो बरस पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी ने जब लाल किले की प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस के मौके पर देश के नाम अपना पहला संबोधन दिया था तो हर किसी ने मुक्त कंठ से उनकी प्रशंसा की थी | हर कोई उनकी तारीफों के कसीदे न केवल पढ़ रहा था बल्कि उन्हें लीक से अलग हटकर चलने वाला प्रधानमंत्री भी बता रहा था | वैसे भी इससे पूर्व जितने भी प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर से बोले वह कमोवेश बिजली , पानी और शिक्षा , गरीबी जैसे मुद्दों पर ही बात करते नजर आये | यही नहीं मोदी ने नई लीक पर चलने का साहस ना केवल बीते बरस दिखाया बल्कि अपने भाषण से लोगों में  लाल किले  में  उत्साह और उमंग का संचार किया |

मोदी ने ना केवल जोशीले भाषण से सभी का दिल जीतने की कोशिश की बल्कि स्वच्छ भारत , निर्मल भारत और आदर्श ग्राम योजना  और सबका साथ सबका  विकास सरीखे वायदों से राजनीती में आदर्श लकीर खींचने  की कोशिशें तेज की लेकिन  इस बार स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले में  पी एम बदले बदले से नजर आये | इसका एक कारण यह हो सकता है पिछली बार वह दिल्ली के लिए नए थे और उनकी सरकार का हनीमून पीरियड  चल रहा था लेकिन ठीक दो साल के बाद अब सिस्टम के अन्दर काम करने पर उन्हें इस बात का भान हो चला है कथनी और करनी को अमली जामा पहनना इतना आसान नहीं है और वह भी उस देश में जहाँ पर नौकरशाही का दौर हावी हो और हवाई घोषणाओं का पिटारा खुलता आ रहा हो  शायद यही वजह रही प्रधानमंत्री के भाषण में वह तेज गायब था जो पिछली दफा हमें देखने को मिला |

लाल किले से मोदी पहली बार जहाँ 75 मिनट बोले  और दूसरी बार मोदी 86 मिनट बोले वहीँ लाल किले से लगातार तीसरी बार 95 मिनट बोलकर उन्होंने खुद अपना रिकॉर्ड तोड़ डाला | आज़ादी के दौर को याद करें तो उस दौर में नेहरु ने 72 मिनट का भाषण दिया था | इस तरह से मोदी का स्वतंत्रता दिवस पर दिया गया  अब तक का यह सबसे लम्बा  भाषण रहा  |  देशवासियों को संबोधित करते हुए उन्होंने इस बार अपनी सरकार के कामकाज के बखान करने का कोई मौका नहीं छोड़ा संभवतया इसका कारण आने वाले समय में चार राज्यों में होने जा रहे विधान सभा चुनाव हों जहाँ आकंड़ों की बाजीगरी कर पी एम ने जनता को उलझाना मुनासिब समझा हो| 

 लाल किले से दिए गए अपने भाषण में पी एम मोदी ने स्वराज को सुराज में बदलने का संकल्प जताया और सुराज को आम आदमी के प्रति संवेदनशीलता के रूप में परिभाषित किया। अपने भाषण में मोदी सिर्फ और सिर्फ अपनी सरकार के सारे काम ही गिनाये। अस्पतालों में ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन से लेकर पासपोर्ट बनाने में तेजी तक के मसलों को उन्होंने उठाया | कारोबारी माहौल बनाने से लेकर 21 करोड़ लोगों को जनधन योजना से सीधे जोड़ने के मसले पर संवाद स्थापित किया | महंगाई को छह फीसद से नीचे रखने और सस्ते एल ई डी बल्ब दिए जाने को उन्होंने सरकार की बड़ी उपलब्धि बताया | दालों का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करने से लेकर नेताजी सुभाषचंद्र बोस से जुड़ी फाइलें सार्वजनिक करने और बीपीएल परिवारों के लिए स्वास्थ्य बीमा, वन रैंक वन पेंशन, उज्ज्वला योजना, बिजली से वंचित अठारह हजार गांवों में से दस हजार गांवों का विद्युतीकरण, जीएसटी विधेयक को संसद की मंजूरी और स्वतंत्रता सेनानियों की पेंशन में बीस फीसद की बढ़ोतरी का जिक्र कर उन्होंने भरोसा दिलाना चाहा कि सरकार लोगों से किए वादे के अनुरूप ही आगे बढ रही है| उन्होंने कहा इस सरकार से लोगों की अपेक्षाएं बढ़ी हैं | उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों के बकाए के भुगतान और गुरु गोबिंद सिंह की तीन सौ पचासवीं जयंती का जिक्र कर उन्होंने उत्तर प्रदेश और पंजाब का दिल जीतने की कोशिश की, जहां कुछ महीनों बाद विधानसभा चुनाव होने हैं।

उन्होंने यह जताने से भी परहेज नहीं किया कि उनकी नीतियों में आदिवासी से लेकर गरीब और शोषित वंचित तबके तक शामिल हैं | गांधी और अम्बेडकर को साधकर उन्होने एक तीर से कई निशाने खेलने की कोशिश की |  पहली बार उनके भाषण में कॉरपरेट और नॉर्थ ईस्ट, टीम इंडिया शब्द गायब दिखा | मोदी ने अपने इस भाषण में  सिर्फ और सिर्फ अपनी सरकार की अब तक की उपलब्धियों का पिटारा ही खोला  |  मोदी ने पिछली बार गाँवों में शौचालय बनाने की बात की थी इस बार भी उन्होंने ढाई करोड़ शौचालय बनाने का काम पूरा होने की बात कही | मोदी के इस बार के भाषण में जहाँ कालाधन  गायब था वहीँ धरती के स्वर्ग कश्मीर के बिगड़ते हालातों और  दलित उत्पीडन की बढती घटनाओंपर कुछ नहीं कहा |   सांसद  आदर्श ग्राम  योजना  की प्रगति , स्वच्छ  भारत , पर भी वह ख़ामोशी की चादर ओढ़ लिए ।   ऐसे मसलों पर देश को पी एम की चुप्पी खूब खली | वह भी स्वतंत्रता दिवस का मौका जब पी एम लाल किले से देश के नाम अपना तीसरा संबोधन कर रहे थे और पिछले दोनों संबोधनों में उन्होंने इस मसले को पूरे देश के सामने उठाया था । 

इस बार पीएम ने पूरे विश्व के सामने पाक को बेनकाब कर दिया | प्रधानमंत्री ने बलूचिस्तान ,गिलगित  ,  पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर में पाकिस्तानी सेना के हाथों हो रहे मानवाधिकार हनन का मुद्दा उठा कर पाकिस्तान के प्रति सरकार के रुख में बदलाव के कड़े संकेत पहली बार लाल किले से दिए। लाल किले से यह किसी पीएम का पडोसी पर यह पहला सीधा वार रहा |  प्रधानमंत्री ने कहा जब पेशावर के एक स्कूल में आतंकी हमले में बच्चे मारे गए थे तो हमारी संसद में आंसू थे ।  भारतीय बच्चे आतंकित थे । यह हमारी मानवीयता का उदाहरण है लेकिन दूसरी तरफ देखिए जहां आतंकवाद को महिमामंडित किया जाता है ।  पाकिस्तान में बुरहान वानी का  जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि यह किस तरह की नीति है,जिसमें आतंकवादियों के साथ खुशी मनाई जाती है । 

वैसे प्रधानमंत्री मोदी की व्यक्तिगत ईमानदारी और प्रशासनिक योग्यताओ और बेहतर कप्तान की योग्यताओं  पर शायद ही किसी को संदेह हो क्युकि मोदी एक मंझे  हुए राजनेता हैं और जनता के मूड को बखूबी पढने वाले राजनेता भी जो ऑडियंस देखकर भाषण देते हैं लेकिन लाल किले का इस बार का पूरा भाषण उन्होने न केवल बीच बीच में पर्ची देखकर  पढ़ा बल्कि वह  पानी पीकर धाराप्रवाह बोलते रहे और चुनावी बरस में महज सरकार की उपलब्धियों का ही जिक्र कर वाहवाही लेने की कोशिश की जिसने उस आम आदमी को लाल किले में निराश किया जिसके मन में मोदी ने बीते दो बरस में लाल किले की प्राचीर  से दिए अपने दो भाषणों में  नए  सपने जगाये थे । 

कुल मिलाकर स्वतंत्रता दिवस के अपने तीसरे भाषण में पी एम मोदी का पिछले बरस वाला जोश गायब दिखा | गुजराती दहाड़ भाषण से गायब ही रही शायद पी एम अपनी कैबिनेट इंडिया की फिरकी में उलझकर रह गए जिस कारण कश्मीर के हालातों , दलित उत्पीड़न की बढ़ रही घटनाओं पर  पी एम को न कुछ उगलते बन रहा था और ना ही कुछ निगलते |