Tuesday 20 April 2021

सल्ट के रण में भाजपा से पिछड़ती काँग्रेस



आगामी 17 अप्रैल को उत्तराखंड के  सल्ट विधानसभा क्षेत्र के लिए होने जा रहे उपचुनाव भाजपा से अधिक काँग्रेस के लिए अधिक  चुनौतीपूर्ण  बन गया है।सल्ट को जीतने में भाजपा ने जहां  अपनी पूरी ताकत झोंकी  है और वह एकजुट नजर आ रही है वहीं  कांग्रेस  गंगा के भरोसे संघर्ष  कर रही है । भाजपा सहानुभूति के रथ पर सवार है, लेकिन  काँग्रेस की अंतर्कलह  इस  चुनावी संग्राम  में जिस तरह  दिख रही है उसे देखते हुए  लग रहा है कहीं इस बार भी काँग्रेस के  खाते में 2022 से पहले हार की पटकथा पहले से ही तैयार हो चुकी है । 

आमतौर पर उपचुनावों का ट्रेंड  सत्तारूढ़ दलों के खाते में ही दर्ज होता रहा है । पहले भी राज्य में ऐसा देखने को मिलता रहा है जो पार्टी सत्ता में होती है उसकी लिए उपचुनाव में जीत दर्ज करने में आसानी होती है ।  राज्य में 2017 के विधान सभा चुनावों के ठीक बाद हुए दो विधानसभा उपचुनावों में भाजपा के प्रत्याशी सहानुभूति लहर की बदौलत जीतते रहे हैं। सल्ट में भी भाजपा को इसी सहानुभूति के करिश्में की उम्मीद दिवंगत नेता सुरेन्द्र सिंह जीना के भाई महेश जीना से है ।भाजपा के लिए महेश जीना नवेले उम्मीदवार हैं। पार्टी के पूर्व  विधायक सुरेंद्र सिंह जीना का बीते साल कोरोना के कारण देहांत हो गया था। उसके बाद से ही सुरेंद्र सिंह जीना के भाई महेश जीना सल्ट विधानसभा सीट में मतदाताओं के बीच आए हैं। महेश के बारे में बताया जाता है कि वह दिल्ली में रहकर अपना बिजनेस संभालते थे। भाजपा के कार्यकर्ताओं में भी उनकी ज्यादा पैठ नहीं है। लेकिन दिवंगत विधायक जीना की मौत की सहानुभूति लेने के लिए उनके भाई को चुनाव में उतारा गया। सल्ट में भाजपा के प्रत्याशी महेश जीना  व्यवसायी हैं और दिल्ली में ही रहते  हैं ।काँग्रेस इस बात को खूब प्रचारित कर रही है लेकिन  सहानुभूति एक ऐसी चीज है जो हर मतदाता के दिल में उस दिन उभर जाया करती है जब वह वोट करता है । सल्ट में भाजपा एकजुट होकर  चुनाव लड़ रही है और पार्टी के सभी छोटे से बड़े नेता कार्यकर्ताओं को चुनाव प्रचार में लगा चुकी है वहीं  भाजपा के 25-30 विधायक  यहां पार्टी प्रत्याशी के चुनाव प्रचार की कमान संभाले हुए हैं जिससे महेश जीना मजबूत होकर उभर रहे हैं । वहीं  कांग्रेस प्रत्याशी गंगा पंचोली के साथ सिर्फ   सांसद प्रदीप टम्टा, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष एवं विधायक गोविंद सिंह कुंजवाल,  रानीखेत के विधायक करण माहरा , पूर्व सीएम हरीश रावत के बेटे आनंद रावत चुनावी प्रचार की कमान संभाले हुए हैं। पार्टी को इस चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की कमी खूब खल रही है।  हरदा  कोरोना से अभी हाल ही में उबरे हैं और इन दिनों  एम्स  से  डिस्चार्ज होकर दिल्ली  में अपना स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं ।  चिकित्सकों ने फिलहाल उन्हें आराम करने की सलाह दी है ।इस लिहाज से उनकी सल्ट में फिलहाल कोई सभा होनी फिलहाल मुश्किल दिख रही है शायद इसी को जानते हुए उन्होनें एम्स से एक आडियो सोशल मीडिया पर गंगा पंचोली के समर्थन में बीते दिनों  डाला ताकि जनता भी हरीश रावत के साथ खड़ी हो सके और गंगा पंचोली के हाथ मजबूत कर  काँग्रेस का हाथ सल्ट में मजबूत हो सके ।  काँग्रेस महासचिव हरीश रावत ने गंगा के पक्ष में एक मार्मिक आडियो अपील जारी कर भाजपा खेमे में भारी हलचल मचा दी है। सल्ट क्षेत्र में इस अपील का क्या   प्रभाव पड़ेगा यह देखने वाली बात होगी ?  इस समय  कांग्रेस का संकट  उसकी अंदरूनी कलह है। हरीश रावत के कई करीबी संकट की इस घड़ी में रणजीत रावत के साथ गलबहियां करते नजर आ रहे हैं।  खुद के चुनाव प्रचार न कर पाने के चलते हरीश रावत ने  सल्ट उपचुनाव का पूरा प्रबंधन अपने करीबी  पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल ,सांसद प्रदीप टम्टा के हवाले कर दिया है।

सल्ट का जिक्र जब भी उत्तराखंड में होता है तो बिना रणजीत रावत के सल्ट अधूरा सा लगता है । 2017 में जब तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत और रणजीत रावत की एकजुटता थी , तब रणजीत हरदा के सलाहकार हुआ करते थे ।  तब रणजीत रावत रामनगर से चुनाव लड़े और  गंगा पंचोली को सल्ट से आजमाया गया ।  गंगा पंचाोली सुरेन्द्र जीना के हाथों पराजित हुई और मोदी लहर में रणजीत का किला भी दरक गया  । इस चुनाव में करारी हार के बाद रणजीत हरदा के धूर  विरोधी बन गए और इन्दिरा कैंप में अपना नया आशियाना बनाया ।  इस बार यही देखने को मिली है सल्ट उपचुनाव  में अब तक  पूर्व कांग्रेसी विधायक रणजीत सिंह रावत और उनके पुत्र ब्लाॅक प्रमुख विक्रम रावत की चुनाव में सक्रियता नहीं  के बराबर है और वह किसी सूरत में गंगा पंचोली  को विजयी नहीं देखना चाहते । काँग्रेस के अंदर भीतरघात अगर सल्ट उपचुनाव में होता है तो  कहीं  रणजीत रावत की यह  नाराजगी काँग्रेस का कोई  बड़ा नुकसान न कर जाये । वैसे भी इस बार  पूर्व विधायक रणजीत रावत इस सीट पर अपने बेटे ब्लाक प्रमुख  विक्रम रावत को उपचुनाव लड़ाना चाहते थे।  काँग्रेस के पर्यवेक्षकों की रिपोर्ट विक्रम रावत के फ़ेवर में थी तो वहीं  नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश और प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह ,  प्रभारी देवेंद्र यादव भी खुलकर दस जनपथ में  विक्रम रावत को ही  टिकट देने की पैरवी करते दिखाई दिये । इन्दिरा और प्रीतम तो  टिकट के एलान से पहले से ही विक्रम रावत के नामांकन के लिए हामी  भरते नजर आए  लेकिन काँग्रेस महासचिव  हरीश रावत  दस जनपथ का भरोसा फिर से जीतने में कामयाब रहे और  दस जनपथ ने गंगा पंचोली पर दांव लगाया जो पिछला चुनाव थोड़े अंतर से हार गई थी । अब चुनाव प्रचार में दो चार  दिन रह गए हैं और काँग्रेस प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष गंगा को प्रत्याशी बनाए जाने के बाद से  इस चुनाव से नदारद दिख रहे हैं उसने कांग्रेस के भीतर कई सवालों को खड़ा कर दिया है ।  चुनाव में जिस तरह से काँग्रेस के ये सभी नेता अपनी  बेरूखी दिखा रहे हैं इसको देखते हुए कहा जा सकता है  काँग्रेस का  अपना आंकड़ा सल्ट उपचुनाव  के जरिये नहीं बढ़ने वाला है । हाँ , हमेशा की तरह गुटबाजी काँग्रेस का इस चुनाव में खेल जरूर  खराब कर देगी  ।  

  वैसे इस  सूबे में भाजपा ने उपचुनाव में सहानुभूति का पूरा  फायदा उठाया  है । वर्ष 2018 में गढ़वाल की थराली सीट से तत्कालीन भाजपा विधायक मगनलाल शाह की मौत के बाद हुए उपचुनाव में उनकी पत्नी मुन्नी देवी को टिकट दिया गया था। भाजपा ने यह सीट जीती तो सही लेकिन अपेक्षा के विपरीत जीत का अंतर बहुत कम यानी महज 1981 मतों का ही रहा। इसके बाद  पिथौरागढ़ में  प्रकाश पंत  के असामयिक निधन के बाद भाजपा ने उनकी पत्नी चंद्रा पंत  को टिकट दिया जिसमें उसकी रणनीति सफल दिखी । सुरेंद्र सिंह जीना दो बार विधायक रहने के बाद तीसरी बार चुनाव मैदान में थे, फिर भी गंगा पंचोली ने मोदी लहर में उन्हें कड़ी टक्कर दी थी। शायद यही वह प्रमुख वजह हो सकती है जिसके कारण भाजपा ने यहां से मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत पर दांव लगाने का जोखिम सल्ट से नहीं लिया। सूबे के मुखिया तीरथ सिंह रावत के लिए  2022 से पहले  यह सेमीफाइनल  जीतना बहुत जरूरी  है। सल्ट में भाजपा के प्रत्याशी महेश जीना अगर विजय श्री हासिल करते  हैं तो वह  2022 से पहले निश्चित ही  बहुत मजबूत होंगेऔर इसके बाद उन्हें भी अपने लिए किसी सुरक्षित सीट से उपचुनाव जीतने में आसानी होगी ।

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