Wednesday 14 November 2018

एन डी तिवारी को कैसे याद रखेगा इतिहास ?

       





देश  की राजनीति का बड़ा कवच लम्बे समय से एन डी तिवारी के इर्द गिर्द ही घूमता रहा है और  उनके चाहने वाले प्रशंसक न केवल कांग्रेस बल्कि हर राजनीतिक दल में आज भी मौजूद हैं |  तिवारी ने अपने कार्यकाल में विकास कार्यों से जनता के दिलों में अपने लिए  न केवल  अलग छवि बनाई बल्क़ि  तिवारी जी ने भी किसी को निराश नहीं किया |  उत्तराखंड की राजनीती में भी एन डी फैक्टर खासा अहम रहा है और तिवारी को विकास पुरुष की संज्ञा से  अगर  नवाजा जाता रहा  तो इसका बड़ा कारण अपने कार्यकाल में तिवारी के द्वारा खींची गई वह लकीर रही  जिसके पास आज तक उत्तराखंड का कोई मंत्री , नेता और मुख्यमंत्री तक नहीं फटक सका है | आज भी उत्तराखंड के गाँवों से लेकर शहर तक में तिवारी के बार में एक जुमला कहा जाता है जितना पैसा तिवारी जी उत्तराखंड के लिए अपने संपर्कों के आसरे लेकर आये उतना कोई मौजूदा नेता नहीं ला सकता शायद यही वजह है तिवारी जी विकास के शिखर पुरुष के रूप में उत्तराखंड के हर तबके में सर्वस्वीकार्य रहे  |   

 उत्तराखंड की राजनीती में कई लोगों ने एन डी तिवारी से ही राजनीती का ककहरा सीखा |  इंदिरा हृदयेश से लेकर डॉ हरक सिंह रावत , यशपाल आर्य से लेकर विजय बहुगुणा और सतपाल महाराज  सरीखे कई बड़े नाम तिवारी की छत्रछाया में ही पले  बढे हैं | 2009  में आंध्र प्रदेश के "सीडी" काण्ड  के बाद जहां तिवारी  की  कांग्रेसी आलाकमान से दूरियां  बढ़ गयी  वहीँ  हर बार चुनावी बरस में तिवारी की राय को कांग्रेस लगातार अनदेखा करती रही  जिसके चलते राजनीतिक  बियावान में उम्र के अंतिम पड़ाव में   तिवारी अकेले पड़  गए लेकिन फिर भी उत्तराखंड को लेकर उनकी सक्रियता हमेशा  बनी रही |   इस दौर में वह न केवल अपने पुराने स्कूल गए  बल्कि भवाली सैनिटोरियम से लेकर एच एम  टी  फैक्ट्री नैनीताल  के विकास कार्यों को लेकर चिंतित नजर आये  |   उम्र के अंतिम  पडाव पर एन डी  को न केवल उनकी पार्टी ने  तन्हा छोड़ा दिया बल्कि उनसे  सारी  सुख सुविधा छीन ली वहीँ उत्तर प्रदेश के पूर्व सी एम अखिलेश ने उन्हें न केवल आसरा दिया बल्कि खुद उनको दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री का दर्जा दिया |   एक मुलाक़ात के  दौरान  तिवारी जी के बेटे रोहित  ने  मुझे दिल्ली में एक  बताया  था  तिवारी का पूरा परिवार उत्तराखंड में अपनी उपेक्षा से ख़ासा आहत है |  कांग्रेस के सबसे बुजुर्ग नेता और उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने   नैनीताल-ऊधमसिंहनगर की  सीट में एक दौर में विकास की गंगा बहाई  | गौरतलब है इस सीट से तिवारी तीन बार सांसद रह चुके थे  |  तीन बार उत्तर प्रदेश और एक बार उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे एनडी की राज्य में मान्यता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता था  कि अब तक बने 9 मुख्यमंत्रियों में वह  उत्तराखंड के ऐसे इकलौते सीएम रहे  जिन्होंने काफी खींचतान  के बावजूद अपना  कार्यकाल पूरा किया |

18 अक्तूबर, 1925 को नैनीताल के बलूती गांव में पैदा हुए तिवारी तिवारी  देश के  ऐसे इकलौते  नेता रहे  जो राजनीति में  परोक्ष रूप से सक्रिय रहे  |  तिवारी के पिता पूरन चंद तिवारी स्वतंत्रता सेनानी थे।  पिता के संस्कार बेटे नारायण दत्त तिवारी में भी आए । देशभक्ति की भावना से प्रेरित होकर विद्यार्थी जीवन में ही आजादी के आंदोलन से जुड़ गए । भारत  छोड़ो आंदोलन में पिता और पुत्र दोनों एक साथ गिरफ्तार कर जेल भेज दिए गए । जेल से छूटने पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा पूरी की । आजादी के समय इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्र संघ के अध्यक्ष भी  रहे  । जवाहरलाल नेहरू, महामना मदनमोहन मालवीय, आचार्य नरेंद्र देव आदि के संपर्क में आए और समाजवादी बन गए | उत्तर प्रदेश में 3  बार और एक बार उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तथा केंद्र में लगभग हर महत्वपूर्ण विभाग के मंत्री रहे तिवारी  की राजनीतिक पारी राजनीती की पिच पर उनकी बैटिंग करने की टेस्ट मैच  स्टाइल को बखूबी बयां करती थी  । वित्त मंत्री  में तिवारी तूती का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता था  उनके दौर में  देश की विकास की विकास दर पहली बार दहाई  आंकड़े को पार गई  | 

 1951-52 के चुनाव में नैनीताल उत्तर सीट से पहली बार सोशलिस्ट  पार्टी के बैनर तले  तिवारी ने  चुनाव जीत कर सबको  चौंका  दिया | उस दौर को याद करें तो सही मायनों में कांग्रेस की हवा के बावजूद  तिवारी जी पहली बार विधानसभा पहुंचे  ।   उस चुनाव में 431 सदस्यीय  सदन में सोशलिस्ट  पार्टी के  20  सदस्य चुनाव जीत गए | 1965  में वह कांग्रेस के टिकट पर  विधान सभा का चुनाव  न केवल जीते बल्कि मंत्री परिषद में जगह बनाने में सफल हुए | 1968  में  जवाहरलाल  नेहरू युवा केन्द्र  स्थापना  तिवारी  योगदान को नहीं भुलाया जा सकता | 1969 -1971 में  कांग्रेस  के युवा संगठन  कमान भी जहाँ तिवारी जिम्मे आई वहीं   1 जनवरी 1976  में पहली  बार  उत्तर प्रदेश  मुख्यमंत्री बनने  गौरव तिवारी  को हासिल हुआ | दूसरी बार तिवारी  1984 और तीसरी बार 1988 में वह  उत्तर प्रदेश जैसे राज्य के मुख्यमंत्री रहे। 

  नैनीताल और उधमसिंहनगर  का पूरा इलाका  तिवारी का मजबूत गढ़ रहा  । अपने कार्यकाल में इस तराई के इलाके में तिवारी ने विकास की जो गंगा बहाई उसकी आज भी विपक्षी तारीफ़ किया करते हैं और जितना कुछ आज उत्तराखंड में  दिख रहा है यह सब तिवारी की ही देन है | अपने कार्यकाल में एन  डी तिवारी ने न केवल इस इलाके में सडकों का भारी जाल बिछाया बल्कि औद्योगिक इकाईयों की स्थापना से लेकर बुनियादी इन्फ्रास्ट्रेक्चर मुहैय्या करवाने में तिवारी के योगदान को आज भी नहीं भुलाया जा सकता शायद यही वजह है उनके विरोधी भी उनके राजनीतिक कौशल के कायल रहे  । नोएडा , ग्रेटर नोएडा, ओखला इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट ,   ट्रोनिका सिटी सरीखी परिकल्पनाएं जहाँ आज चकाचौंध अट्टालिकाओं में दिखता  है यह सब  तिवारी की  देन है | यही नहीं गंगा  यमुना  तहजीब से जुडी नवाबों  की नगरी लखनऊ के गोमतीनगर और इंदिरानगर सरीखे इलाके तिवारी जी  के बसाये  हुए हैं | 

एन डी तिवारी के सक्रिय  राजनीतिक जीवन की शुरुवात भी  नैनीताल की कर्मभूमि से ही हुई  । चालीस के दशक में जनान्दोलनों में सक्रिय  रहे तिवारी ने अपनी सियासी पारी को नई उड़ान इसी नैनीताल संसदीय इलाके ने जहाँ दी ,वहीँ स्वतंत्रता आंदोलन और आपातकाल  के दौर में भी तिवारी ने अपनी भागीदारी से अपनी राजनीतिक कुशलता को बखूबी साबित किया । नारायण दत्त तिवारी नब्बे  के दशक  में प्रधानमंत्री की कुर्सी से भी चूक गए थे । उस दौर को अगर याद करें तो नरसिंह राव ने चुनाव नहीं लड़ा लेकिन  नरसिंह  राव  पीएम बन गए । आज भी तिवारी के मन में  पी एम न बन सकने की कसक रही  |  1991  में नैनीताल बहेड़ी संसदीय  सीट से वह इसलिए चुनाव हार गए क्युकि चुनाव प्रचार के दौरान अभिनेता दिलीप कुमार ने बहेड़ी में सभा की | उनका असली नाम युसूफ मिया था और किसी ने अफवाह उड़ा दी कि युसूफ मियां की सिफारिश पर ही उन्हें टिकट मिला है | इससे लोगों में गलत सन्देश गया और उनके वोट कट गए |  अगर तिवारी नैनीताल में नहीं हारते तो शायद वह उस समय देश के प्रधानमंत्री बन जाते । 800  वोटों के मामूली अंतर  हुई  इस हार चलते तिवारी पीएम  कुर्सी के करीब आते आते फिसल गए  और नरसिंह राव प्रधानमंत्री बने | 1995 में उन्होंने कांग्रेस से अलग होकर  अपनी अलग पार्टी बनाई लेकिन सफल नहीं हो  सके और 2 बरस बाद ही घर वापसी कर  गए | 

    इसके बाद तिवारी की उत्तराखंड में मुख्यमंत्री के रूप में इंट्री वानप्रस्थ के रूप में 2002  में हुई । इसी वर्ष  उत्तराखंड के पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सत्ता में आने पर कांग्रेस आलाकमान ने  हरीश रावत को नकारकर एनडी तिवारी को  सरकार की बागडोर सौंपी थी |  तिवारी उस समय लोकसभा में नैनीताल सीट से ही सांसद थे लिहाजा उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने लोकसभा सदस्यता से इस्तीफा देकर रामनगर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और रिकार्ड जीत दर्ज कर उत्तराखंड में अपनी  धमाकेदार इंट्री की। तिवारी के तमाम राजनीतिक कौशल के वाबजूद उनके विरोधी तिवारी को राज्य आंदोलन के मुखर विरोधी नेता के रूप में आये   शायद इसकी बड़ी वजह तिवारी का अतीत में दिया गया वह बयान रहा जिसमे उन्होंने कहा था उत्तराखंड उनकी लाश पर बनेगा लेकिन इन सब के बीच नारायण दत्त तिवारी की गिनती विकास पुरुष के रूप में उत्तराखंड में होती रही तो  इसका सबसे बड़ा कारण यह था उन्होंने अपनी सरकार में विरोधियो के साथ तो लोहा लिया ही साथ ही विपक्षियो को भी अपनी अदा से खुश रखा शायद यही वजह रही  उस दौर में भाजपा पर मित्र विपक्ष के आरोप भी लगे और तिवारी ने जमकर लाल बत्तियां राज्य में बांटी  ।

 उत्तराखंड में 2002 विधानसभा चुनाव  के बाद उन्होंने  कोई चुनाव नहीं लड़ा लेकिन 2012 में हल्द्वानी, रामनगर, काशीपुर , विकासनगर,  किच्छा ,जसपुर, रुद्रपुर और गदरपुर में कांग्रेस के उम्मीदवारों के लिए  बड़े रोड शो करके वोट मांगे ।  2009  में  हैदराबाद राजभवन "सेक्स स्कैंडल" और  " रोहित  शेखर" पुत्र विवाद के बाद सियासत में  बेशक उनका सियासी कद घट जरुर गया और उनके अपने कांग्रेसियों ने उनसे दूरी बनाने में ही अपनी भलाई समझी | उत्तराखंड  में सोमनवारी बाबा का एक  किस्सा  तिवारी जी  बारे में खूब मशहूर रहा । तिवारी जब चार बरस  के थे तो सोमनवारी बाबा ने उन्हें आशीर्वाद दिया था कि यह बालक जीवन में कई ऊंचाइयां छुएगा। बाबा के आशीर्वाद से ऐसा हुआ भी लेकिन तिवारी की एक भूल से बाबा नाराज हो गए थे। उन्होंने शाप दिया कि वह  जीवन में ऊंचाइयां तो हासिल करेंगे, लेकिन अंतिम  मोड़ पर पिछड़ जाएंगे ।  सही मायनों  में अंतिम समय में तिवारी की राजनीति कुछ इसी करवट बैठी | हैदराबाद राजभवन "सेक्स स्कैंडल" और  " रोहित  शेखर" पुत्र विवाद के बाद भी तिवारी टायर्ड  नहीं हुए बल्कि देहरादून  में फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट का "अनंतवन "  फिर से उनकी नई राजनीति का नया  केंद्र बन गया  जहाँ से उन्होंने लखनऊ की तरफ अपने कदम बढ़ाये और अखिलेश सरकार को अपना मार्गदर्शन देने का  न केवल काम  किया बल्कि  यू पी के कई सरकारी विभागो की ख़ाक छानकर यह बता दिया अभी भी राजनीती तिवारी की रग रग में है  । भले ही कांग्रेस आलाकमान उनको भाव ना दे लेकिन वह  हर बड़े  और छोटे   नेता  को सलाह देने को  वह हमेशा तैयार रहे |    

 तिवारी की मौत के बाद देश की राजनीती के एक बड़े युग का अवसान हो गया |  योजना आयोग के उपाध्यक्ष , उद्योग , वाणिज्य , वित्त सरीखे भारी भरकम मंत्रालय संभालकर तिवारी ने सही मायनो में  अपनी विकास पुरुष की छवि को चमकाया  | निवेश के आसरे राजस्व बढ़ाने में तिवारी  को महारत हासिल थी और आजीवन तिवारी जी  ने अपनी  ऊर्जा विकास कार्यों को आगे बढ़ाने में लगा दी |   उनके बेटे  रोहित को अब  अपने पिता एन डी के विकासकार्यों को आगे बढ़ाना है | इसके लिए सबसे सही तरीका संवाद है और एन डी भी इस कुशलता के माहिर खिलाड़ी रहे हैं लिहाजा रोहित को भी आज चाहिए वह लोगों के बीच व्यक्तिगत तौर पर जाकर अपनी अलग पहचान खुद से बनाये और जनता से जुडी जमीनी राजनीती करें | वह इसमें कितना कामयाब होंगे यह तो आना वाला कल ही  बतायेगा लेकिन  उत्तराखंड में तिवारी जी की मौत से राजनीती  के बड़े युग का अवसान हुआ  है | 

1 comment:

Unknown said...

जानदार