
आज अपनी बात दिल्ली के दंगल से शुरू करता हूँ.... मध्य प्रदेश में तो मतदान भी पूरा हो चुका है... अब बारी दिल्ली और राजस्थान की है...... सारे पार्टियों के प्रचारक अब दिल्ली और राजस्थान की और अपना रुख कर चुके है...वहां पर कल मतदान होना है...... चुनाव प्रचार के अन्तिम दिनों में बीजेपी , कांग्रेस के साथ बसपा भी वोटरों को लुभाने में कोई कसर नही छोड़ी... सारे दलों ने दिल्ली को जीतने के दावे किए है लेकिन असली किंग का पता तो ८ दिसम्बर को चल पायेगा जब सभी राज्यू के साथ दिल्ली की तकदीर का फेसला होगा..... ।
जहाँ कांग्रेस अपने १० वर्ष के कार्यकाल को अपनी जीत का आधार बना रही है वहीँ बीजेपी शीला के किले में किसी भी तरह से सेंध लगना चाहती है जिसके लिए उसके नेता एडी चोटी का जोर लगा रहे है....दिल्ली में इस चुनाव में बसपा की उपस्थिति ने मुकाबले को रोचक बना दिया है...दिल्ली में इस बार चढ़ रहा माया का "हाथी" हाथ और कमल दोनों का खेल खराब कर रहा है॥
विश्लेषकों का मानना है हाथी की बदती धमक से दोनों दलौं की नीद उडी हुई है....कई जगह यह कमल और हाथ को कुचल रहा है ..... आसार तो इस बात के लग रहे है भले ही माया बहनजी यहाँ पर ज्यादा सीट न ला पाए लेकिन हार जीत का अन्तर कम या ज्यादा करने में वह इक बड़ी भूमिका निभाएंगी जिस कारन से चुनाव परिणाम प्रभावित हो सकते है... ।
७० सीटो वाली दिल्ली की विधान सभा में पिचले चुनाव में कांग्रेस को ४७ सीट मिली थी वहीँ बीजेपी २० सीटो तक सिमटकर रह गयी थीइस बार के समीकरण पिचली बार से अलग नज़र आ रही है,,, परिसीमन के के कारन से पूरा दिल्ली का भूगोल बदल गया है जिस कारन से कई नेताओ के सीट और विधान सभा बदल चुकी है... फिर भी दिल्ली के अन्दर कई सीट ऐसी है जिनको देखकर लगता है जैसे बीजेपी और कांग्रेस के नेताओ ने मिलके कोई समझोता कर लिया है.... एक दर्जन सीट ऐसी है जहाँपर दोनों दलौं ने इक दूसरे के विरुद्ध कमजोर उम्मीदवार को खड़ा किया है यहाँ पर दोनों में से इक की जीत आसानी से सुनिश्चित है लेकिन सभी जगह ऐसा हाल नही हैकई जगह बसपा की मौजूदगी से कांग्रेस का खेल ख़राब होरहा है ।
दिल्ली पर इस बार सबकी नज़र लगी हुई है...यहाँ का इतिहास बताता है की यहाँ पर बारी बारे से हर ५ साल में सत्ता की चाभी बदलती रही है... केवल शीला "मैडम" का हाल का १० वर्षो का कार्यकाल को छोड़ दे तो पहले का इतिहास भी इसी कहानी कहानी को बतियाता है... कांग्रेस इस बार "शीला का दम " गाने के सहारे चुनावी वैतरणी पार करनाचाह रही है वहीँ बीजेपी के पास शीला के किले में सेंध लगाने को कई मुद्दे है...जैसे वह आतंकवाद, महंगाई , करप्शनको बड़े मुद्दे के रूप में प्रचारित कर रही है साथ में गरीबो के हाथ शीला के राज में असफलता हाथ लगने को वह भुनाने की तयारी में है... ।
जहाँ कांग्रेस की और से सीएम के रूप में शीलापहले से डिक्लेयर हो गया था वहीँ बीजेपी को इस पर भरी फजीहतें झेलनी पड़ रही थी लिहाजा उनके द्वारा अन्तिम समय में विजय कुमार मल्होत्रा का नाम घोषित किया गया सीएम नाम पार्टी के लिए गले की हड्डी बन गया था लेकिन लास्ट समय में मल्होत्रा पर मुहर लगाने को पार्टी मजबूर हुई जिसको हर्षवर्धन, जगदीश मुखी ,विजय गोएल, जैसे नेता नही पचा पा रहे है अब देखना है गुटबाजी से परेशान बीजेपी यहाँ पर किस तरह से शीला के किले में सेंध लगा पाती है?
हमारे दिल्ली के कुछ सूत्र बताते है पार्टी में विजय कुमार मल्होत्रा करना जादू सर चदकर नही बोल रहा है... उनका नाम घोषित न होने से पहले तक जहाँ बीजेपी करना सत्ता बाज़ार में दाव ऊँचा लग रहा था वहीँ अब यह बहुत नीचे आ चुका है ... विश्लेषक इसके पीछे कई कारणों को जिम्मेदार बताते है॥ जहाँ पहले लोगो को उम्मीद थी की पार्टी की और से जेटली या फिर स्वराज का नाम घोषित किया जाएगा वहीँ अब मल्होत्रा के आने से लोगों की उमीदू को धक्का लगा है क्युकी यह दोनों नेता ऐसे थे जो शीला के कद के कही टक्कर के थे इनको प्रोजेक्ट करने से शायद कांग्रेस "बेक फ़ुट" ड्राइव पर चली जाती लेकिन अब मल्होत्रा के आने से कांग्रेस के नेताओ की बांचे खिल गयी है साथ में अंदरखाने मल्होत्रा की दावेदारी को बीजेपी के कई बड़े नेता नही पचा प् रहे है ऐसे सूरत में शीला की वापसी की प्रबल सम्भावना दिख रही है शीला के पिटारे में विकास का मुद्दा है और यह एक नया चलन बन चुका है आज विकास के आगे सारे मुद्दे गौड़ हो जाते है॥ हम इसको बेहतर ढंग से गुजरात में देख चुके है यहाँ यह भी बताते चले १० वर्षो में शीला ने खाफी सराहनीय कार्य किए है जिनको लेकर जनता में कोई नाराजगी नही दिखती हालाँकि कई जगह उनकी काम की प्रणाली को लेकर भारी विरोध भी है जो किसी भी दल के साथ होना कोई नई बात नही है अभी कई मुद्दे ऐसे है जिनको लेकर उन्होंने वह चुस्ती नही दिखाई जिनकी अपेक्षा जनता को १० वर्षो में थी ।
लेकिन बीजेपी इस समय बड़े संकट में फसती नज़र आ रहे है कल मतदान होना है लेकिन दिल्ली से छानकर आ रही खबर कह रही है की मल्होत्रा कम जादू जनता पर अपना असर छोड़ पायेगा यह कह पाना मुस्किल नज़र आ रहा है हालाँकि उसने यहाँ पर अपने दिग्गी नेताओ और फिल्मी प्रचारकों को पूरी ताकत से कोम्पैनिंग में लगाया था लेकिन दिल्ली के मतदाता की खामोसी ने उसकी दिलो की धड़कन को बड़ा दिया है यही कारन है वह यहाँ पर कई सर्वे करा चुकी है जिस पर रिजल्ट यह निकल कर आया है पार्टी मल्होत्रा की कप्तानी में डगमग हालत में खड़ी है अभी ज्यादा समय नही बीता जब शीला और मल्होत्रा इक टीवी चैनल की बहस की दौरान आमने सामने खड़े थे , इस बहस में मल्होत्रा शीला से बुरी तरह से उलझकर रह गए थे जिसको लेकर उन्हें पार्टी के आकाओं की और से खासी किरकिरी झेलनी पड़ी थी बताया जाता है इसके बाद हाई कमान ने उनको यह आदेश दे दिया की वह अब मीडिया में कोई स्टेटमेंट देने से पहले १० बार सोंचे तभी से मल्होत्रा खामोश बैटकर अपने विधान सभा ग्रेटर केलाश में ही उलझे हैअब कल मतदान में उनका और पार्टी कम क्या होता है यह फेसला तो जनता को करना है लेकिन फिर भी मल्होत्रा को यहाँ पर चमत्कार की आस है वह दिल्ली की दो तिहाई सीट जीतने कम दावा कर रहे है ।
बीजेपी के पास अब यहाँ एक नया मुद्दा हाथ लग गया है यदि वह इसको सही से भुना लेती है तो परिणाम उसके पाले में जा सकते है मुंबई में आतंकवादी कार्यवाही ने बीजेपी को संप्रग सरकार को घेरने कम एक बड़ा मुद्दा दे दिया है जिस तरह से आज और कल मुंबई धमाको से हिल गयी उसको देखते हुए मुझको लगता है आने वाले विधान सभा के चुनाव में आतंरिक सुरक्षा इक बड़ा मुद्दा बनेगा सभाबतः यह दिल्ली की फिजा कम रुख अपने और मोड़ सकता है वैसे भी मनमोहन सरकार लंबे समय से आतंकवाद पर नरम रुख अपनाने के विरोधियो के तीखे तीर झेलती आ रही हैदेश की आर्थिक राजधानी में जिस सुनियोजित तरीके से आतंकवादियो ने इसको अंजाम दिया है उससे हमारी सरकार और सुरक्षा एजेंसियों की पोल खुल गई हैमनमोहन सरकार के लिए आने वाले दिन काफी संकट भरे रहने वाले हैअगर बीजेपी ने दिल्ली, मध्य प्रदेश, राजस्थान ,छत्तीसगढ़ फतह कर लिया तो ८ दिसम्बर को संप्रग के साथी दल पर भी इसका असर पड़ना तय हैउससे पहले हमारे "शिवराज" की विदाई भी तय है वैसे ही लंबे समय से उनको हटाने की मांग की जा रही हैपहले भी ३, ४ बार कपड़े बदलने के चक्कर में उनकी मीडिया में और पार्टी में जमकर खिचाई हो चुकी है अब मुंबई की समस्या उनका पीछा नही छोडेगीलिहाजा बीजेपी के पास सही मुद्दा हाथ लग गया है यह कांग्रेस का जहाज डुबोने की पूरी चमता रखता हैवैसे भी भगवा ब्रिगेड विपक्षियों के "हिंदुत्व आतंकवाद " के मुद्दे पर तीखे तीर झेल रहे थी उसके नेता इस पर बगल झांकते नज़र आ रहे थे अब चुनाव से पहले यह मुंबई वाला मुद्दा जनता के लिए अहम् सवाल बन सकता है खैर देखते है बीजेपी की राह आगे कैसे रहती है?
मैं भी कहाँ से कहाँ की परिक्रमा कर जाता हूँ आप इसके बारे में कुछ भी नही कह सकते बात कर रहा था दिल्ली के कल के चुनावो की आतंरिक सुरक्षा बीच में आ गई तभी तो अपने दोस्त कहते हा यार ब्लॉग में तो तुमने सारी सीमाओं को तौड़ दिया है ... पूरा रिपोर्ट कवर कर रहे हो.... छोड़ कुछ भी नही रहे हो... क्या करे यही बात कल में अपने दिल्ली के दोस्त से भी कर रहा था यार कंप्यूटर पर अगर में इक बार काम करने लग जाऊँ तो कलम इतनी फास्ट चलती है जो भी दिमाग में उमड़ घुमड़कर आता रहता है वही सब ब्लॉग में भी लिखता रहता हूँआज ही की बात है अपने दिल्ली के दोस्त जो भोपाल में हमारे साथ है कह रहे थे "यार इतना कैसे किख देते हो? कल ब्लॉग दिखाया तो उन्होंने फ़रमाया "इसको पड़ने में लंबा समय चाहिए"........... ।
" क्या करे हम है ही अलग सोचने वाले..... दिल्ली की कंपनी भीड़ से हटकर सोचती है... लेकिन यह मेरा दुर्भाग्य है सारी कंपनी अलग थलग हो गई है यही बात हम आज दिन में अपने दोस्त से भोपाल में कर रहे थे हर किसी को सलाह है हमारी बस मेहनत करते रहो ॥ सफलता मिलेगी.... हम हर पल आपके साथ है ॥ हमारी पूरी कंपनी ..... भी .. कर ॥ बस आप कोसिस करते रहो ... ।
चलिए अब बात समाप्तकरदेता हूँ हम बात कर रहे थे दिल्ली के चुनाव की ..... मुख्य रूप से यहाँ पर मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच है लेकिन बसपा के आने से खेल मज़ेदार हो गया हैअभी कई सीटो पर बसपा आगे चल रही हैजहाँ पर उसका अच्छा प्रभाव देखा जा रहा है पिछली बार के नगर निगम चुनाओ की बात करें तो उसका वोट % बड़ा था स्सथ में वह कई जगह कांग्रेस से आगे बदत बनाये हुए थीलिहाजा इस बार भी उसको यही आस है की वह यहाँ पर " किंग मेकर" के रोल में नज़र आएगी ब्राह्मण कार्ड खेलकर उसने फिर दिल्ली में दिखा दिया है "उप हुई हमारी है अब दिल्ली की बारी है" अब देखते है ८ दिसम्बर को हाथी दिल्ली में क्या भूमिका निभाता है? थोड़ा इंतजार करें .... सब्र का फल मीठा होता है...... चुनावो की अपनी रिपोर्टो को यही पर विराम देता हूँ कल से बात करेंगे नए विषय की ....आतंकवाद पर अपनी कलम कल बोलेगी.... ।
जहाँ कांग्रेस अपने १० वर्ष के कार्यकाल को अपनी जीत का आधार बना रही है वहीँ बीजेपी शीला के किले में किसी भी तरह से सेंध लगना चाहती है जिसके लिए उसके नेता एडी चोटी का जोर लगा रहे है....दिल्ली में इस चुनाव में बसपा की उपस्थिति ने मुकाबले को रोचक बना दिया है...दिल्ली में इस बार चढ़ रहा माया का "हाथी" हाथ और कमल दोनों का खेल खराब कर रहा है॥
विश्लेषकों का मानना है हाथी की बदती धमक से दोनों दलौं की नीद उडी हुई है....कई जगह यह कमल और हाथ को कुचल रहा है ..... आसार तो इस बात के लग रहे है भले ही माया बहनजी यहाँ पर ज्यादा सीट न ला पाए लेकिन हार जीत का अन्तर कम या ज्यादा करने में वह इक बड़ी भूमिका निभाएंगी जिस कारन से चुनाव परिणाम प्रभावित हो सकते है... ।
७० सीटो वाली दिल्ली की विधान सभा में पिचले चुनाव में कांग्रेस को ४७ सीट मिली थी वहीँ बीजेपी २० सीटो तक सिमटकर रह गयी थीइस बार के समीकरण पिचली बार से अलग नज़र आ रही है,,, परिसीमन के के कारन से पूरा दिल्ली का भूगोल बदल गया है जिस कारन से कई नेताओ के सीट और विधान सभा बदल चुकी है... फिर भी दिल्ली के अन्दर कई सीट ऐसी है जिनको देखकर लगता है जैसे बीजेपी और कांग्रेस के नेताओ ने मिलके कोई समझोता कर लिया है.... एक दर्जन सीट ऐसी है जहाँपर दोनों दलौं ने इक दूसरे के विरुद्ध कमजोर उम्मीदवार को खड़ा किया है यहाँ पर दोनों में से इक की जीत आसानी से सुनिश्चित है लेकिन सभी जगह ऐसा हाल नही हैकई जगह बसपा की मौजूदगी से कांग्रेस का खेल ख़राब होरहा है ।
दिल्ली पर इस बार सबकी नज़र लगी हुई है...यहाँ का इतिहास बताता है की यहाँ पर बारी बारे से हर ५ साल में सत्ता की चाभी बदलती रही है... केवल शीला "मैडम" का हाल का १० वर्षो का कार्यकाल को छोड़ दे तो पहले का इतिहास भी इसी कहानी कहानी को बतियाता है... कांग्रेस इस बार "शीला का दम " गाने के सहारे चुनावी वैतरणी पार करनाचाह रही है वहीँ बीजेपी के पास शीला के किले में सेंध लगाने को कई मुद्दे है...जैसे वह आतंकवाद, महंगाई , करप्शनको बड़े मुद्दे के रूप में प्रचारित कर रही है साथ में गरीबो के हाथ शीला के राज में असफलता हाथ लगने को वह भुनाने की तयारी में है... ।
जहाँ कांग्रेस की और से सीएम के रूप में शीलापहले से डिक्लेयर हो गया था वहीँ बीजेपी को इस पर भरी फजीहतें झेलनी पड़ रही थी लिहाजा उनके द्वारा अन्तिम समय में विजय कुमार मल्होत्रा का नाम घोषित किया गया सीएम नाम पार्टी के लिए गले की हड्डी बन गया था लेकिन लास्ट समय में मल्होत्रा पर मुहर लगाने को पार्टी मजबूर हुई जिसको हर्षवर्धन, जगदीश मुखी ,विजय गोएल, जैसे नेता नही पचा पा रहे है अब देखना है गुटबाजी से परेशान बीजेपी यहाँ पर किस तरह से शीला के किले में सेंध लगा पाती है?
हमारे दिल्ली के कुछ सूत्र बताते है पार्टी में विजय कुमार मल्होत्रा करना जादू सर चदकर नही बोल रहा है... उनका नाम घोषित न होने से पहले तक जहाँ बीजेपी करना सत्ता बाज़ार में दाव ऊँचा लग रहा था वहीँ अब यह बहुत नीचे आ चुका है ... विश्लेषक इसके पीछे कई कारणों को जिम्मेदार बताते है॥ जहाँ पहले लोगो को उम्मीद थी की पार्टी की और से जेटली या फिर स्वराज का नाम घोषित किया जाएगा वहीँ अब मल्होत्रा के आने से लोगों की उमीदू को धक्का लगा है क्युकी यह दोनों नेता ऐसे थे जो शीला के कद के कही टक्कर के थे इनको प्रोजेक्ट करने से शायद कांग्रेस "बेक फ़ुट" ड्राइव पर चली जाती लेकिन अब मल्होत्रा के आने से कांग्रेस के नेताओ की बांचे खिल गयी है साथ में अंदरखाने मल्होत्रा की दावेदारी को बीजेपी के कई बड़े नेता नही पचा प् रहे है ऐसे सूरत में शीला की वापसी की प्रबल सम्भावना दिख रही है शीला के पिटारे में विकास का मुद्दा है और यह एक नया चलन बन चुका है आज विकास के आगे सारे मुद्दे गौड़ हो जाते है॥ हम इसको बेहतर ढंग से गुजरात में देख चुके है यहाँ यह भी बताते चले १० वर्षो में शीला ने खाफी सराहनीय कार्य किए है जिनको लेकर जनता में कोई नाराजगी नही दिखती हालाँकि कई जगह उनकी काम की प्रणाली को लेकर भारी विरोध भी है जो किसी भी दल के साथ होना कोई नई बात नही है अभी कई मुद्दे ऐसे है जिनको लेकर उन्होंने वह चुस्ती नही दिखाई जिनकी अपेक्षा जनता को १० वर्षो में थी ।
लेकिन बीजेपी इस समय बड़े संकट में फसती नज़र आ रहे है कल मतदान होना है लेकिन दिल्ली से छानकर आ रही खबर कह रही है की मल्होत्रा कम जादू जनता पर अपना असर छोड़ पायेगा यह कह पाना मुस्किल नज़र आ रहा है हालाँकि उसने यहाँ पर अपने दिग्गी नेताओ और फिल्मी प्रचारकों को पूरी ताकत से कोम्पैनिंग में लगाया था लेकिन दिल्ली के मतदाता की खामोसी ने उसकी दिलो की धड़कन को बड़ा दिया है यही कारन है वह यहाँ पर कई सर्वे करा चुकी है जिस पर रिजल्ट यह निकल कर आया है पार्टी मल्होत्रा की कप्तानी में डगमग हालत में खड़ी है अभी ज्यादा समय नही बीता जब शीला और मल्होत्रा इक टीवी चैनल की बहस की दौरान आमने सामने खड़े थे , इस बहस में मल्होत्रा शीला से बुरी तरह से उलझकर रह गए थे जिसको लेकर उन्हें पार्टी के आकाओं की और से खासी किरकिरी झेलनी पड़ी थी बताया जाता है इसके बाद हाई कमान ने उनको यह आदेश दे दिया की वह अब मीडिया में कोई स्टेटमेंट देने से पहले १० बार सोंचे तभी से मल्होत्रा खामोश बैटकर अपने विधान सभा ग्रेटर केलाश में ही उलझे हैअब कल मतदान में उनका और पार्टी कम क्या होता है यह फेसला तो जनता को करना है लेकिन फिर भी मल्होत्रा को यहाँ पर चमत्कार की आस है वह दिल्ली की दो तिहाई सीट जीतने कम दावा कर रहे है ।
बीजेपी के पास अब यहाँ एक नया मुद्दा हाथ लग गया है यदि वह इसको सही से भुना लेती है तो परिणाम उसके पाले में जा सकते है मुंबई में आतंकवादी कार्यवाही ने बीजेपी को संप्रग सरकार को घेरने कम एक बड़ा मुद्दा दे दिया है जिस तरह से आज और कल मुंबई धमाको से हिल गयी उसको देखते हुए मुझको लगता है आने वाले विधान सभा के चुनाव में आतंरिक सुरक्षा इक बड़ा मुद्दा बनेगा सभाबतः यह दिल्ली की फिजा कम रुख अपने और मोड़ सकता है वैसे भी मनमोहन सरकार लंबे समय से आतंकवाद पर नरम रुख अपनाने के विरोधियो के तीखे तीर झेलती आ रही हैदेश की आर्थिक राजधानी में जिस सुनियोजित तरीके से आतंकवादियो ने इसको अंजाम दिया है उससे हमारी सरकार और सुरक्षा एजेंसियों की पोल खुल गई हैमनमोहन सरकार के लिए आने वाले दिन काफी संकट भरे रहने वाले हैअगर बीजेपी ने दिल्ली, मध्य प्रदेश, राजस्थान ,छत्तीसगढ़ फतह कर लिया तो ८ दिसम्बर को संप्रग के साथी दल पर भी इसका असर पड़ना तय हैउससे पहले हमारे "शिवराज" की विदाई भी तय है वैसे ही लंबे समय से उनको हटाने की मांग की जा रही हैपहले भी ३, ४ बार कपड़े बदलने के चक्कर में उनकी मीडिया में और पार्टी में जमकर खिचाई हो चुकी है अब मुंबई की समस्या उनका पीछा नही छोडेगीलिहाजा बीजेपी के पास सही मुद्दा हाथ लग गया है यह कांग्रेस का जहाज डुबोने की पूरी चमता रखता हैवैसे भी भगवा ब्रिगेड विपक्षियों के "हिंदुत्व आतंकवाद " के मुद्दे पर तीखे तीर झेल रहे थी उसके नेता इस पर बगल झांकते नज़र आ रहे थे अब चुनाव से पहले यह मुंबई वाला मुद्दा जनता के लिए अहम् सवाल बन सकता है खैर देखते है बीजेपी की राह आगे कैसे रहती है?
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" क्या करे हम है ही अलग सोचने वाले..... दिल्ली की कंपनी भीड़ से हटकर सोचती है... लेकिन यह मेरा दुर्भाग्य है सारी कंपनी अलग थलग हो गई है यही बात हम आज दिन में अपने दोस्त से भोपाल में कर रहे थे हर किसी को सलाह है हमारी बस मेहनत करते रहो ॥ सफलता मिलेगी.... हम हर पल आपके साथ है ॥ हमारी पूरी कंपनी ..... भी .. कर ॥ बस आप कोसिस करते रहो ... ।
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